जींद में बच्ची को दी गई गलत दवाई: गंभीर लापरवाही से चार साल की मासूम बेहोश
( Sahil Kasoon ) नरवाना सिविल अस्पताल में एक गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। डॉक्टर द्वारा चार वर्षीय बच्ची को पेट के कीड़े मारने की एल्बेंडाजोल दवा लिखी गई थी, लेकिन अस्पताल के दवा काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने गलती से उसे दौरे की दवा कारबाजेपिन दे दी। बच्ची ने जैसे ही यह दवा ली, वह बेहोश हो गई और अब दो दिनों से होश में नहीं आई है। इस घटना ने सरकारी अस्पतालों की लापरवाह दवा वितरण प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कैसे हुई यह लापरवाही?
बद्दोवाल गांव के निवासी संजय अपनी चार वर्षीय बेटी निधि को लेकर 2 अप्रैल को नरवाना के सिविल अस्पताल गए थे। डॉक्टर ने बच्ची की जांच करने के बाद उसे एल्बेंडाजोल नामक दवा लेने की सलाह दी। यह दवा अक्सर उन बच्चों को दी जाती है, जिनके पेट में कीड़े होते हैं और इससे उनकी सेहत प्रभावित होती है।
संजय डॉक्टर की सलाह के अनुसार अस्पताल के दवा काउंटर पर गए और वहां मौजूद कर्मचारी से दवा ली। लेकिन, यहां लापरवाही हुई और कर्मचारी ने एल्बेंडाजोल की जगह गलती से कारबाजेपिन नामक दवा दे दी, जो आमतौर पर मिर्गी या दौरे के मरीजों को दी जाती है।
गलत दवाई से बिगड़ी बच्ची की हालत
चार साल की मासूम निधि के लिए यह दवा बहुत भारी साबित हुई। यह दवा 400 मिलीग्राम की भारी डोज में दी गई थी, जो इतनी कम उम्र के बच्चे के लिए अत्यधिक खतरनाक साबित हो सकती है। दवा लेने के तुरंत बाद निधि बेहोश हो गई।
परिजन घबरा गए और तुरंत डॉक्टरों से संपर्क किया। निधि को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन दो दिन बीत जाने के बावजूद बच्ची को अभी तक होश नहीं आया है।
सरकारी अस्पतालों की लापरवाही पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है जब सरकारी अस्पतालों में इस तरह की लापरवाही सामने आई हो। दवा वितरण प्रणाली में लापरवाही और काउंटर पर बिना अनुभव के कर्मचारियों की तैनाती से कई मरीजों की जान पर खतरा बना रहता है। जींद जिले के सरकारी अस्पतालों में फार्मेसी इंटर्न को दवा काउंटर पर बैठाया जाता है, जिससे कई बार डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा की जगह दूसरी दवा मरीज को दे दी जाती है।
निधि के पिता संजय ने इस लापरवाही के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि समय पर सही दवा दी जाती तो उनकी बेटी आज इस हालत में नहीं होती।
स्वास्थ्य विभाग की प्रतिक्रिया
इस मामले पर जब नरवाना सिविल अस्पताल के डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. पालेराम कटारिया से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि मामला उनके संज्ञान में नहीं था। लेकिन अब इसकी जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना सरकारी अस्पतालों में सुधार की जरूरत को दर्शाती है। यदि फार्मेसी इंटर्न को दवा काउंटर पर तैनात किया जाता है, तो उनकी उचित ट्रेनिंग और निगरानी जरूरी है ताकि ऐसी लापरवाहियां दोबारा न हों।
समाधान क्या हो सकता है?
- दवा वितरण प्रणाली में सख्ती: सरकारी अस्पतालों में दवा वितरण प्रणाली को सख्त और सुव्यवस्थित बनाने की जरूरत है ताकि डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा ही मरीज तक पहुंचे।
- प्रशिक्षित स्टाफ की नियुक्ति: फार्मेसी इंटर्न की जगह अनुभवी और प्रशिक्षित फार्मासिस्ट को दवा काउंटर पर बैठाया जाए।
- सही दवा देने की प्रक्रिया: हर दवा को मरीज को देने से पहले दोबारा जांचा जाए ताकि किसी भी गलती से बचा जा सके।
- डिजिटल सिस्टम की शुरुआत: दवा वितरण प्रणाली को डिजिटल किया जाए ताकि डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा सीधे फार्मेसी विभाग तक पहुंचे और गलती की संभावना कम हो।
- दोषियों पर कार्रवाई: ऐसी घटनाओं में शामिल लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी गलती न हो।