हरियाणा में HPGC कर्मचारियों को झटका:हाईकोर्ट ने प्रमोशन रद्द किए, IME सर्टिफिकेट को नहीं माना मान्य, डिप्लोमा धारकों के पद बहाल होंगे
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम (HPGC) के कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने एक मामले में इन कर्मचारियों के प्रमोशन रद्द कर दिए हैं।
ये प्रमोशन कर्मचारियों को मैकेनिकल इंजीनियर्स संस्थान (IME) से मिली योग्यता के आधार पर मिले थे। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने 40 पन्नों के फैसले में कहा कि आईएमई का सर्टिफिकेट तीन साल के नियमित इंजीनियरिंग डिप्लोमा की कानूनी शर्तों को पूरा नहीं करता।
यह फैसला सतपाल और अन्य बनाम हरियाणा राज्य से जुड़ी पांच याचिकाओं को एक साथ सुनने के बाद दिया गया। कोर्ट ने डिप्लोमा धारक याचिकाकर्ताओं की वरिष्ठता बहाल कर दी है और साथ ही 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की देरी से और गलत व्याख्या करने के लिए एचपीजीसी की आलोचना भी की।
क्या है पूरा मामला यह मामला एच.पी.जी.सी की 29 दिसंबर, 2004 की पदोन्नति नीति पर केंद्रित था, जिसके तहत ऑपरेटर और फोरमैन में 15 प्रतिशत पद उन कर्मचारियों के लिए आरक्षित किए गए थे, जिनके पास इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल/इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीई/ए.एम.आई.ई या इंजीनियरिंग में तीन वर्षीय डिप्लोमा हो, बशर्ते उनके पास तीन वर्ष का अनुभव हो।
याचिकाकर्ताओं, जिन्होंने प्लांट अटेंडेंट या टेक्नीशियन के रूप में शुरुआत की थी, ने पूर्णकालिक पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए बिना वेतन के अवकाश लेकर डिप्लोमा हासिल किया।
डिप्लोमा के लिए तीन साल नौकरी से बाहर रहे जस्टिस बराड़ ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने नियुक्ति से पहले डिप्लोमा हासिल करने के लिए तीन साल नौकरी से बाहर बिताए। उन्होंने एक नियमित पाठ्यक्रम किया था जो प्रकृति में अधिक कठोर है और तकनीकी शिक्षा के सभी आवश्यक क्षेत्रों को कवर करता है।
इसके विपरीत, निजी प्रतिवादियों ने दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम पर भरोसा किया, जिसमें उपस्थिति की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन छात्रों को मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के समकक्ष विज्ञापित योग्यता प्राप्त करने के लिए परीक्षा में बैठने की अनुमति थी। हालांकि, मान्यता रद्द कर दी गई और बाद में 2016 में इसे सीमित मान्यता दी गई।
याचिकाकर्ताओं के पद बहाल किए जाएं जस्टिस बराड़ ने आईएमई मामले में 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चयनात्मक पाठ पर एचपीजीसी के भरोसे को खारिज कर दिया। उन्होंने लिखा कि आम तौर पर, किसी भी फैसले की व्याख्या विशिष्ट मामले के तथ्यों के संदर्भ में ही की जानी चाहिए।
उसे अपने आप में संपूर्ण कानून मान लेना न तो उचित है और न ही स्वीकार्य। आईएमई प्रमाणपत्रों की वैधता पर, अदालत ने टिप्पणी की कि प्रतिवादी-आईएमई नियमित कक्षाएं संचालित करके दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से तकनीकी शिक्षा प्रदान करने का दावा नहीं करता है, बल्कि यह केवल द्वि-वार्षिक परीक्षाएं आयोजित करता है और उत्तीर्ण होने वालों को प्रमाणपत्र जारी करता है।
इस आधार पर प्रमोशन रद्द किया हाईकोर्ट ने रेखांकित किया कि 2012 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा दी गई मान्यता केंद्र सरकार के रोजगार तक ही सीमित थी। आईएमई प्रमाणपत्र धारकों को पदोन्नति देना 2019 के फैसले की भावना और उद्देश्य का उल्लंघन है। अदालत ने आदेश दिया कि आईएमई प्रमाणपत्र धारकों की पदोन्नति वापस ली जाए और याचिकाकर्ताओं के पद बहाल किए जाएं।




