ढाकल हैड से रजबाहा निकालने की मांग को लेकर धरना, विधायक अत्री ने जताया समर्थन”
The Airnews | उचाना, जिला जींद | रिपोर्टर: Sahil Kasoon
हरियाणा के जींद जिले के उचाना क्षेत्र में किसानों ने एकजुट होकर अपनी वर्षों पुरानी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया। मुख्य मांग रही — ढाकल हैड से रजबाहा (छोटी नहर) निकालना, जो किसानों की सिंचाई समस्याओं का स्थायी समाधान बन सकती है। किसानों का नेतृत्व संयुक्त किसान मजदूर मोर्चा द्वारा किया गया, और उन्होंने विधायक देवेंद्र चतरभुज अत्री को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।
धरना स्थल बना किसान आवाज़ का मंच
धरना स्थल पर सुबह से ही किसानों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। ढाकल हैड पर एक दिवसीय धरना किसानों के मन की पीड़ा और लंबित मांगों का प्रतिनिधित्व करता है। बीरा करसिंधु, जोधा सेढ़ा माजरा, जंगीर पालवां, मिया सिंह, उजाला, वेदप्रकाश शर्मा, धीरा सहित कई अनुभवी किसान नेताओं ने इस मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
किसानों का स्पष्ट संदेश था – “अब वक़्त आ गया है कि ढाकल हैड से रजबाहा निकाली जाए, ताकि सिंचाई की समस्या से जूझते खेतों को राहत मिल सके।”
विधायक देवेंद्र अत्री की संवेदनशील प्रतिक्रिया
जैसे ही विधायक देवेंद्र चतरभुज अत्री को धरने की सूचना मिली, उन्होंने तुरंत किसानों से फोन पर संवाद किया। इसके बाद उन्होंने उन्हें PWD विश्राम गृह, उचाना बुलाकर व्यक्तिगत रूप से चर्चा की। किसानों ने मांग पत्र सौंपा और अपनी समस्याएं विस्तार से रखीं, जिनमें प्रमुख रूप से ये मांगे शामिल थीं:
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ढाकल हैड से रजबाहा निकालना
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उचाना में सरकारी कॉलेज का निर्माण
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स्थानीय पार्क और सार्वजनिक सुविधाओं का विकास
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मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से सीधे मुलाकात का अवसर
विधायक अत्री ने विश्वास दिलाया कि वे स्वयं मुख्यमंत्री से इन मुद्दों पर बात करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे स्वयं एक किसान परिवार से आते हैं, इसलिए किसानों की परेशानियों को न केवल समझते हैं, बल्कि उनके समाधान के लिए कटिबद्ध हैं।
विधानसभा में उठ चुके हैं मुद्दे
विधायक अत्री ने बताया कि ढाकल हैड से रजबाहा निकालने की मांग वे पूर्व में भी हरियाणा विधानसभा में उठा चुके हैं। यह महज़ एक जनसमूह की मांग नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
उनके अनुसार, यदि यह रजबाहा निकाली जाती है तो उचाना और आस-पास के दर्जनों गांवों को सिंचाई सुविधा मिल सकेगी, जिससे पैदावार में वृद्धि और किसानों की आय में इजाफा होगा।
जनहित के अन्य मुद्दे भी सामने आए
धरने के दौरान सिर्फ रजबाहा ही नहीं, बल्कि सरकारी कॉलेज और स्थानीय विकास कार्यों को लेकर भी किसानों ने मांग रखी। उचाना जैसे शैक्षिक पिछड़े क्षेत्र में कॉलेज की मांग लंबे समय से चल रही है, जिससे स्थानीय विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए दूर नहीं जाना पड़े।
साथ ही एक स्थायी सार्वजनिक पार्क के निर्माण की भी मांग की गई, जिससे ग्रामीणों को स्वास्थ्य और सामुदायिक आयोजनों के लिए एक उपयुक्त स्थान मिल सके।
किसान संगठनों ने विधायक पर जताया भरोसा
संयुक्त किसान मजदूर मोर्चा के प्रमुख नेता आजाद पालवां ने विधायक देवेंद्र अत्री की कार्यप्रणाली पर संतोष जताया। उन्होंने कहा कि “विधायक पहले भी किसानों की समस्याएं विधानसभा में उठाते रहे हैं और आज भी उन्होंने हमारी बातों को गंभीरता से सुना और मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का भरोसा दिया।”
धरना: लोकतंत्र की जमीनी ताकत का परिचायक
इस एक दिवसीय धरने ने यह सिद्ध किया कि अगर जनता एकजुट हो जाए, तो प्रशासन और राजनेताओं को संज्ञान लेना ही पड़ता है। यह घटना सिर्फ एक सिंचाई मांग नहीं, बल्कि जन प्रतिनिधियों और जनता के बीच संवाद और भरोसे का उदाहरण भी बनी।
मुख्यमंत्री कार्यक्रम में मुलाकात की माँग
धरने के दौरान किसानों ने यह भी स्पष्ट किया कि वे मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के आगामी कार्यक्रम के दौरान उनसे सीधी मुलाकात चाहते हैं। इस संदर्भ में विधायक ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे यह प्रस्ताव सरकार तक पहुंचाएंगे और प्रयास करेंगे कि किसानों की बात मुख्यमंत्री सीधे सुनें।
राजनीतिक संकेत और असर
इस पूरी घटना से एक राजनीतिक संकेत भी निकलकर आता है — ग्रामीण और किसान आधारित राजनीति में अब केवल चुनाव के दौरान सक्रियता नहीं चलेगी। प्रतिनिधियों को जनता से लगातार संवाद बनाए रखना होगा। विधायक अत्री द्वारा तुरंत प्रतिक्रिया देना और किसानों से व्यक्तिगत चर्चा करना, इस दिशा में एक सकारात्मक उदाहरण माना जा रहा है।
अंतिम विचार: क्या होगा आगे?
अब जब मांग पत्र सौंपा जा चुका है और विधायक ने सार्वजनिक रूप से आश्वासन दिया है, तो आने वाले कुछ हफ्ते निर्णायक हो सकते हैं। यदि ढाकल हैड से रजबाहा की स्वीकृति मिलती है या मुख्यमंत्री से मुलाकात संभव होती है, तो यह धरना एक बड़ी सफलता की कहानी बन सकता है।
यदि नहीं, तो यह आंदोलन भविष्य में बड़ा रूप भी ले सकता है। किसान संगठनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी मांगें ठोस हैं और वे किसी तरह की टालमटोल स्वीकार नहीं करेंगे।