नारनौल के एक ही गांव से चौथा जवान शहीद: पार्थिव शरीर को देख मां-पत्नी बेहोश हुईं

नारनौल के एक ही गांव से चौथा जवान शहीद: पार्थिव शरीर को देख मां-पत्नी बेहोश हुईं, 5 दिन पहले ही ड्यूटी पर लौटे थे
हरियाणा के नारनौल जिले में एक शोकदायी घटना घटित हुई जब CRPF के जवान महावीर सिंह की मृत्यु की खबर ने उनके परिवार और गांव के लोगों को गहरा आघात पहुंचाया। महावीर सिंह की शहादत ने न केवल उनके परिवार को शोक में डूबो दिया, बल्कि पूरे गांव में गहरी उदासी का माहौल बना दिया। यह घटना केवल एक जवान की शहादत नहीं थी, बल्कि एक गांव के इतिहास में चौथे जवान के रूप में दर्ज हुई है, जिसने अपने प्राणों की आहुति देश की सेवा में दी।
शहीद महावीर की शहादत: एक वीर का बलिदान
महावीर सिंह, जो कि 45 वर्ष के थे, जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में ड्यूटी पर तैनात थे, 5 दिन पहले ही अपनी ड्यूटी पर लौटे थे। 13 साल के अपने बेटे के साथ जीवन के कई खूबसूरत पल बिताने के बाद वह अपने देश की सेवा में लौटे थे, लेकिन श्रीनगर में ड्यूटी के दौरान उनका दिल अचानक धड़कना बंद हो गया। 15 अप्रैल, रविवार की सुबह महावीर सिंह को हार्ट अटैक आया, जिससे उनका निधन हो गया।
परिवार को जब इस हादसे का पता चला तो उन्हें झटका लगा। सुबह लगभग 8 बजे महावीर के शहीद होने की खबर उनके परिवार को मिली। इससे पहले वे अपनी पूरी तन्मयता से ड्यूटी निभा रहे थे और किसी ने नहीं सोचा था कि यह उनका अंतिम दिन होगा। परिवार के लोग इस असामान्य घटना को न समझ पाए और शोक संतप्त हो गए।
शहीद महावीर के परिवार का गहरा दुख
महावीर सिंह के परिवार के लिए यह घटना किसी बुरी सपना से कम नहीं थी। उनकी पत्नी ममता और मां के लिए यह बहुत ही दुखद था। जब महावीर का पार्थिव शरीर घर पहुंचा, तो उनकी मां ने बेटे से लिपटने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोग उन्हें संभालने लगे, क्योंकि वह इस सदमे को सहन नहीं कर पा रही थीं। उनकी पत्नी ममता भी गहरे शोक में डूबी हुईं थीं और घर के बाकी सदस्य भी अत्यधिक दुखी थे।
महावीर के तीन बच्चे थे – 18 वर्षीय संजना, 16 वर्षीय तमन्ना, और 13 वर्षीय पारस। इन बच्चों के लिए यह पल कभी न भूलने वाला था। पारस, जो कि 9वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था, अपने पिता की शहादत से बिल्कुल टूट गया था। इस दुखद घटना ने पूरे परिवार को शोक में डुबो दिया और गांव में भी मातम का माहौल था।
सीआरपीएफ जवान महावीर का जीवन: संघर्ष और बलिदान
महावीर सिंह ने 2004 में CRPF (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) जॉइन किया था। उन्होंने अपनी सेवा पूरी निष्ठा और ईमानदारी से की। वह डेढ़ साल से श्रीनगर में तैनात थे, जहां पर वह अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे थे। इससे पहले, वह गुजरात के गांधीनगर में भी तैनात रहे थे। उनका जीवन एक सच्चे सैनिक का जीवन था, जिसमें उन्होंने अपने परिवार और देश की सेवा में कई कष्टों और संघर्षों का सामना किया।
शहीद महावीर के परिवार के बारे में जानकारी देने वाले उनके बड़े भाई विनोद कुमार ने बताया कि उनका छोटा भाई अशोक कुमार भी सेना में है। शहीद महावीर के पिता भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उनका परिवार हमेशा देश सेवा को सर्वोपरि मानता आया है। महावीर सिंह का निधन उनके परिवार के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
गांव से पहले तीन जवान हो चुके हैं शहीद
महावीर सिंह के गांव में यह चौथा जवान था, जो देश की सेवा में शहीद हुआ। इससे पहले भी इस गांव से तीन अन्य जवान शहीद हो चुके हैं। गांव के सरपंच हरिओम ने इस दुखद घटना पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके गांव के लोग हमेशा से देश की सेवा के प्रति समर्पित रहे हैं। महेन्द्रगढ़ जिले में हर गांव से करीब 10 सैनिक सेना में तैनात हैं, और इस गांव से चार जवानों की शहादत ने यहां के लोगों को देश के प्रति अपने कर्तव्यों को और भी अधिक निष्ठापूर्वक निभाने के लिए प्रेरित किया है।
अंतिम विदाई: एक सच्चे सैनिक को श्रद्धांजलि
जब शहीद महावीर का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा, तो स्थानीय लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए जुटे। गांव से बस स्टैंड तक एक रैली निकाली गई, जिसमें आसपास के गांवों के लोग भी शामिल हुए। इस रैली का नेतृत्व CRPF के जवानों ने किया, जो शहीद महावीर को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके गांव पहुंचे थे। पार्थिव शरीर के घर पहुंचते ही चीख-पुकार मच गई और यह दृश्य हर किसी के लिए दिल दहला देने वाला था।
महावीर सिंह का अंतिम संस्कार नांगल चौधरी से MLA मंजू चौधरी, पूर्व पार्षद विनोद यादव, सरपंच प्रतिनिधि हरिओम यादव और गहली पुलिस चौकी प्रभारी संजय कुमार की उपस्थिति में किया गया। अंतिम विदाई के समय, महावीर के 13 वर्षीय बेटे ने उन्हें मुखाग्नि दी और इस दौरान सभी ने उनके बलिदान को सलाम किया।
महावीर के बलिदान को याद करते हुए
महावीर सिंह का बलिदान न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है। उनका जीवन देश के प्रति निष्ठा और समर्पण का प्रतीक था। जब उन्होंने सीआरपीएफ जॉइन की थी, तब उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाने का संकल्प लिया था, और उन्होंने इस संकल्प को पूरा किया। उनका बलिदान हम सभी को यह सिखाता है कि देश की सेवा में अगर हमें अपनी जान भी देनी पड़े, तो हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
उनके परिवार ने न केवल अपनी संतानों के लिए एक अच्छा जीवन सुनिश्चित किया, बल्कि उन्होंने अपने घर के एक सदस्य को देश की सेवा के लिए भेजा। अब, महावीर सिंह के बच्चों और पत्नी को इस दुख के साथ जीना होगा, लेकिन उनका बलिदान हमेशा उनके दिलों में जिंदा रहेगा।
सरकार से मदद की अपील
शहीद महावीर के परिवार ने सरकार से अपील की है कि उनके बेटे की शहादत को सम्मानित किया जाए और उनका पार्थिव शरीर देश लाने में मदद की जाए, ताकि उन्हें अपने गांव की मिट्टी नसीब हो सके। परिवार ने इस दुखद परिस्थिति में सरकार से मदद की उम्मीद जताई है, ताकि महावीर सिंह की शहादत का सम्मान और उसकी अंतिम यात्रा सुचारु रूप से पूरी हो सके।
महावीर सिंह की शहादत हर भारतीय के दिल में एक अमिट छाप छोड़ गई है। उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा, और वे हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।




