loader image
Saturday, November 8, 2025

पानीपत के स्कूल में महिला टीचर स्टूडेंट्स को सिखाया कलमा, घर आकर बच्चे लगे गुनगुनाने, सुनते ही परेंट्स ?


स्कूल में पहुंचे परिजन.

पानीपत | May 17, 2025 | Sahil Kasoon हरियाणा के पानीपत शहर के प्रतिष्ठित स्कूल ‘सरस्वती विद्या मंदिर’ में अचानक से मचा बवाल न केवल अभिभावकों को झकझोर गया बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र और धार्मिक सहिष्णुता को लेकर एक नई बहस छेड़ दी। यह विवाद एक महिला शिक्षक द्वारा छात्रों को कलमा पढ़ाने से शुरू हुआ, लेकिन बाद में यह प्रकरण सामाजिक और राजनीतिक आयाम ले बैठा।


क्या है पूरा मामला?

सूत्रों के अनुसार, यह घटना पानीपत के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की है, जो 2002 से संचालित है और संस्कार आधारित शिक्षा के लिए प्रसिद्ध है। कुछ दिन पहले कक्षा 8वीं की संस्कृत अध्यापिका महजीब अंसारी उर्फ माही ने बच्चों को कथित रूप से इस्लामी कलमा पढ़ाया।

बच्चों ने घर जाकर जब यह कलमा गुनगुनाना शुरू किया, तो अभिभावकों के होश उड़ गए। कई बच्चों के मुंह से “ला इलाहा इल्लल्लाह…” जैसे वाक्यांश सुनकर अभिभावकों ने स्कूल की शिक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाए।


अभिभावकों का आक्रोश और स्कूल का जवाब

अगले ही दिन, स्कूल में अभिभावकों का जमावड़ा लग गया। उनका आरोप था कि यह मामला केवल शिक्षा से जुड़ा नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था से खिलवाड़ है। उनका मानना था कि बच्चों को बिना परामर्श के किसी अन्य धर्म से संबंधित प्रार्थना या कलमा सिखाना अनुचित और आपत्तिजनक है।

स्कूल प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए महजीब अंसारी को बर्खास्त कर दिया और मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को सूचित किया गया।


पुलिस की भूमिका और समझौता

स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते हुए स्थानीय पुलिस टीम मौके पर पहुंची और मामले को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए स्कूल प्रशासन, टीचर और अभिभावकों के बीच मध्यस्थता करवाई। टीचर द्वारा माफी मांगने और स्कूल प्रशासन द्वारा बर्खास्तगी के बाद मामला शांत हुआ।


महजीब अंसारी का पक्ष

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, महजीब अंसारी का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी प्रकार का धर्मांतरण नहीं था। उनका कहना था कि वे छात्रों को “सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता” का उदाहरण देने के लिए कलमा का ज़िक्र कर रही थीं। हालांकि, स्कूल प्रशासन और अभिभावकों ने इस तर्क को नकारते हुए कहा कि बच्चों पर ऐसा प्रभाव डालना उचित नहीं।


राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

हिंदू संगठनों का विरोध

घटना के सामने आते ही कुछ हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और इसे ‘शैक्षणिक जिहाद’ का उदाहरण बताया। उनका कहना था कि यह एक साजिश हो सकती है जिससे मासूम बच्चों को प्रभावित कर धर्मांतरण की दिशा में ले जाया जा सके।

धार्मिक समूहों की प्रतिक्रिया

दूसरी ओर, कुछ मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने टीचर के समर्थन में यह बयान दिया कि शिक्षा में विभिन्न धर्मों की जानकारी दी जा सकती है और यदि किसी धर्म का उदाहरण दिया गया हो तो उसका मतलब जबरदस्ती धर्म थोपना नहीं होता।


कानूनी पक्ष और शिक्षा विभाग की जांच

हरियाणा शिक्षा विभाग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच समिति गठित कर दी है। अगर यह साबित होता है कि बच्चों को बिना अनुमति के धार्मिक शिक्षा दी गई, तो इसके परिणाम स्वरूप अन्य स्कूलों में भी गाइडलाइन जारी की जाएगी

IPC की धारा 295(A) (धार्मिक भावनाएं आहत करना) के तहत भी यह मामला दर्ज किया जा सकता है अगर कोई पक्ष कानूनी प्रक्रिया चाहता हो।


विद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी

सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल ने इस मामले के बाद कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

  • असेंबली और कक्षा में दिए जाने वाले लेक्चर पर निगरानी बढ़ाई गई है।

  • सभी टीचर्स को लिखित निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी धर्म विशेष की धार्मिक प्रक्रिया या मंत्र विद्यार्थियों को न सिखाएं।

  • बच्चों के पाठ्यक्रम से इतर कोई गतिविधि बिना प्राचार्य की अनुमति के नहीं कराई जाएगी।


समाज में उठते सवाल

  1. क्या शिक्षक अपने व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों को छात्रों पर थोप सकते हैं?

  2. क्या धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हर धर्म की शिक्षा देना सही है, खासकर जब बात छोटे बच्चों की हो?

  3. क्या शिक्षकों को विभिन्न धर्मों की जानकारी देने से पहले माता-पिता की अनुमति लेनी चाहिए?


साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट: मासूम मन और धार्मिक पहचान

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बचपन में दी गई धार्मिक जानकारी लंबे समय तक स्मृति में रहती है। यदि यह जानकारी बिना संतुलन और समझदारी के दी जाए, तो बच्चों की धार्मिक पहचान और सोच पर असर पड़ सकता है। यही कारण है कि अभिभावकों का आक्रोश केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक चिंता से भी जुड़ा हुआ है।


भविष्य की शिक्षा नीतियों पर असर

यह घटना हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में शिक्षा के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर गहरी छाया छोड़ सकती है। NEP 2020 (नई शिक्षा नीति) में भले ही ‘इंडिक स्टडीज़’ या ‘धार्मिक सहिष्णुता’ जैसे विषयों को बढ़ावा देने की बात हो, लेकिन उसकी एक सीमित और वैज्ञानिक व्याख्या अनिवार्य है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!