यमुनानगर में किसानों का विरोध: दादूपुर नलवी नहर को बंद करने का फैसला
( Sahil Kasoon ) हरियाणा के यमुनानगर जिले में किसानों ने दादूपुर नलवी नहर को पूरी तरह से बंद करने का फैसला लिया है। इसके तहत, किसानों ने जेसीबी मशीन लगाकर नहर में मिट्टी डालने का काम शुरू कर दिया है। इस फैसले के पीछे वर्षों से चल रही एक लंबी कानूनी और प्रशासनिक जंग है, जिसके परिणामस्वरूप अब किसान स्वयं इस नहर को बंद करने की कार्रवाई कर रहे हैं।
दादूपुर नलवी नहर: एक ऐतिहासिक योजना
दादूपुर नलवी नहर परियोजना की शुरुआत साल 2004 में हुई थी। इस योजना का उद्देश्य यमुनानगर, कुरुक्षेत्र और अंबाला जिलों में सिंचाई के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित करना था। सरकार ने इस योजना के तहत सैकड़ों एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी, जिसमें किसानों को मुआवजा दिया गया था।
हालांकि, इस परियोजना को क्रियान्वित करने में कई तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएं आईं, जिसके चलते यह नहर पूरी तरह से चालू नहीं हो सकी। इस वजह से प्रभावित किसानों में असंतोष बढ़ता गया।
सरकार की नीति और किसानों का असंतोष
कई वर्षों तक यह नहर बिना पानी के पड़ी रही, जिससे किसान बेहद नाराज हो गए। हरियाणा सरकार ने 2016 में इस परियोजना को डी-नोटिफाई (अमान्य) कर दिया, जिससे किसानों में और रोष बढ़ गया। उनका आरोप था कि सरकार ने बिना किसी ठोस वजह के इस परियोजना को बंद कर दिया, जबकि यह नहर किसानों के लिए एक जीवनरेखा साबित हो सकती थी।
कानूनी लड़ाई और किसानों की हार
नहर को बंद करने के सरकार के फैसले के खिलाफ किसानों ने अदालत का रुख किया।
- हरियाणा हाईकोर्ट ने किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे उन्हें उम्मीद जगी कि नहर फिर से चालू होगी।
- लेकिन हरियाणा सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जहां मामला पलट गया और किसानों को निराशा हाथ लगी।
इस फैसले के बाद सरकार ने नहर को पूरी तरह से खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस पर किसानों ने विरोध जताया और अब स्वयं नहर को बंद करने का काम शुरू कर दिया।
किसानों का गुस्सा: जेसीबी और मिट्टी से नहर बंद करने की कार्रवाई
किसानों ने नहर में मिट्टी डालकर उसे पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया। उनका कहना है कि जब सरकार ने इसे बंद करने का फैसला ले ही लिया है, तो वे भी इस अधूरी परियोजना को हमेशा के लिए खत्म कर देंगे।
किसानों के प्रमुख तर्क:
- सरकार की अनदेखी: वर्षों से इस नहर को चालू करने की कोई ठोस योजना नहीं बनी, जिससे किसान निराश हो गए।
- भूमि अधिग्रहण: किसानों की जमीन ली गई थी, लेकिन उन्हें अब तक कोई संतोषजनक समाधान नहीं मिला।
- विकल्प की कमी: सरकार ने बिना किसी वैकल्पिक सिंचाई व्यवस्था के इस नहर को बंद करने का फैसला किया, जिससे किसान प्रभावित हुए।
इस फैसले का प्रभाव
- पर्यावरणीय प्रभाव: नहर को बंद करने से आसपास के जल स्रोतों और भूजल स्तर पर असर पड़ सकता है।
- कृषि पर प्रभाव: सिंचाई के लिए वैकल्पिक संसाधन न मिलने से किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- राजनीतिक असर: किसानों की नाराजगी सरकार के खिलाफ बढ़ सकती है, जिससे राजनीतिक स्तर पर विरोध तेज हो सकता है।
सरकार और प्रशासन का पक्ष
सरकार का कहना है कि यह नहर आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं थी और इसे चालू रखने से अधिक नुकसान हो सकता था। प्रशासन का यह भी दावा है कि किसानों को उनकी जमीन का उचित मुआवजा दिया गया था। हालांकि, किसान इस दावे को नकारते हैं और इसे सरकार की असफलता मानते हैं।
समाधान और भविष्य की संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को किसानों के साथ बैठकर संवाद करना चाहिए और कोई वैकल्पिक समाधान निकालना चाहिए। कुछ संभावित विकल्प निम्नलिखित हो सकते हैं:
- किसानों को नहर क्षेत्र में अन्य कृषि परियोजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए।
- सिंचाई के लिए नई योजनाएं बनाई जाएं।
- सरकार और किसानों के बीच किसी निष्पक्ष संस्था के माध्यम से वार्ता करवाई जाए।