हरियाणा में अफसरों पर 5.90 करोड़ का जुर्माना, लेकिन वसूली में सुस्ती: सूचना आयोग के 4043 मामलों में कार्रवाई, 2.84 करोड़ अभी भी बकाया
चंडीगढ़, 03 अप्रैल 2025
Amit Dalal
हरियाणा राज्य सूचना आयोग (HSIC) ने अपनी स्थापना के बाद से लेकर 31 जनवरी 2025 तक 4043 मामलों में राज्य लोक सूचना अधिकारियों (SPIO) पर 5.90 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना सूचना के अधिकार (RTI) कानून के तहत जानकारी देने में देरी या नियमों का पालन न करने के लिए लगाया गया। हालांकि, चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से केवल 1965 मामलों में 3.06 करोड़ रुपये की वसूली हुई, जबकि 2.84 करोड़ रुपये अभी भी बकाया हैं। यह स्थिति अधिकारियों की उदासीनता और व्यवस्थागत खामियों को उजागर करती है।
19 साल में 32,827 नोटिस, लेकिन जुर्माना सिर्फ 4043 मामलों में
आरटीआई कार्यकर्ता और हरियाणा सूचना अधिकार मंच के राज्य संयोजक सुभाष ने बताया कि 2005 से अब तक आयोग ने धारा 20(1) के तहत 32,827 मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए। इसके बावजूद, जुर्माना केवल 4043 मामलों में ही लागू किया गया। इस अवधि में आयोग को 1 लाख से अधिक अपीलें और शिकायतें मिलीं, जो सूचना के अधिकार के प्रति बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है। फिर भी, जुर्माना वसूली में कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
वर्षवार नोटिसों का विवरण
आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में नोटिसों की संख्या में उतार-चढ़ाव देखा गया है। 2006 में 25 नोटिस जारी हुए, जो 2024 में बढ़कर 3,159 तक पहुंच गए। इस साल 31 जनवरी तक 153 नोटिस जारी हो चुके हैं। अन्य प्रमुख वर्षों में 2015 में 2,971, 2019 में 3,223 और 2020 में 2,821 नोटिस जारी किए गए। यह आंकड़े नियमों के उल्लंघन की निरंतरता को दर्शाते हैं।
अधिकारियों की उदासीनता और आयोग की सीमाएं
सुभाष के अनुसार, कई अधिकारियों ने सालों पहले लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं किया है। कुछ ने कोर्ट में अपील दायर की, तो कुछ ने आंशिक भुगतान किया, लेकिन बाकी राशि अभी भी बकाया है। इसके अलावा, आयोग में स्टाफ की कमी भी बड़ी बाधा है। वर्तमान में 10 पदों में से 6 खाली हैं, जिससे कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है।
क्या कहती है यह स्थिति?
हरियाणा में सूचना के अधिकार को लागू करने में आ रही ये चुनौतियां न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती हैं, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों को भी प्रभावित कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अधिकारियों पर सख्ती और आयोग की क्षमता में सुधार नहीं होगा, तब तक यह व्यवस्था पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाएगी।