हरियाणा में बीजेपी का मिशन जाट: धन्ना भगत के सहारे सियासी जमीन मजबूत करने की रणनीति
The Airnews | चंडीगढ़
रिपोर्टर: Yash, The Airnews
हरियाणा की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है, और इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ‘मिशन जाट’ के तहत एक नई रणनीति अपनाई है। यह रणनीति न तो महज चुनावी है और न ही केवल जातीय समीकरणों पर आधारित है, बल्कि इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का भी सहारा लिया जा रहा है। राजस्थान के प्रसिद्ध संत धन्ना भगत अब हरियाणा की राजनीति में भाजपा के नए प्रतीक बनकर उभरे हैं।
धर्म और जाति की समरसता के साथ मिशन की शुरुआत
भाजपा लंबे समय से हरियाणा में जाट समुदाय के बीच अपनी साख मजबूत करने की कोशिश कर रही है। लेकिन किसान आंदोलन, जाट आरक्षण आंदोलन जैसे मुद्दों के कारण पार्टी को लगातार इस वर्ग से दूरी महसूस होती रही है। अब भाजपा ने इससे निपटने के लिए नया रास्ता चुना है — धर्म और आस्था।
भाजपा के रणनीतिकारों ने महसूस किया कि धर्म एक ऐसा माध्यम हो सकता है जिससे जाट समुदाय के बीच बिना प्रतिरोध के प्रवेश किया जा सकता है। यही वजह है कि पार्टी ने धन्ना भगत को केंद्र में रखकर इस मिशन की नींव रखी है।
कौन हैं भगत धन्ना?
भगत धन्ना राजस्थान में जन्मे एक प्रसिद्ध वैष्णव संत थे। उनकी भक्ति, सरलता और सामाजिक समरसता की भावना ने उन्हें लोकमान्यता दिलाई। वे भगवान शिव और विष्णु दोनों के उपासक रहे हैं। हरियाणा में उनके लाखों अनुयायी हैं, विशेषकर जाट समुदाय में।
धन्ना भगत के अनुयायी आज भी धनावंशी स्वामी के रूप में पहचाने जाते हैं। हरियाणा के हिसार, रोहतक, कैथल और अन्य जिलों में धन्ना भगत के नाम पर मंदिर, आश्रम और समाजिक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। सिख धर्म के ग्रंथों में भी उनका उल्लेख है। उनके भक्तों का मानना है कि वे धर्म और जाति से ऊपर उठकर समर्पण और सेवा के प्रतीक थे।
राजनीति में भगत धन्ना का प्रवेश
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो भाजपा अब धन्ना भगत के माध्यम से जाट बहुल इलाकों में घुसपैठ कर रही है। पिछले दो वर्षों से राजस्थान और हरियाणा की सीमा पर स्थित जिलों में धन्ना भगत की जयंती पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अब 2025 में, 20 अप्रैल को उचाना (जिला जींद) में एक विशाल आयोजन होने जा रहा है, जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे।
मिशन की जिम्मेदारी सुभाष बराला को
भाजपा ने इस रणनीति को सफल बनाने के लिए एक अनुभवी और जाट समुदाय से जुड़े नेता को जिम्मेदारी सौंपी है — राज्यसभा सांसद सुभाष बराला। बराला पहले हरियाणा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं। जाट समुदाय में उनकी अच्छी पैठ है और उन्हें एक संयमित और रणनीतिक नेता माना जाता है।
मिशन जाट के पीछे BJP की रणनीतिक सोच
1. 22% जाट वोट बैंक को साधने की जरूरत
हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी लगभग 22% है, जो राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। हालांकि परंपरागत रूप से जाट कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के समर्थक रहे हैं। बीजेपी के पास भी एक मजबूत जाट वोट बैंक मौजूद है, जिसे पार्टी ‘कैडर’ मानती है। लेकिन हाल के वर्षों में यह कैडर भी डगमगाता नजर आया है। इसी को बचाने और बढ़ाने के लिए यह मिशन शुरू किया गया है।
2. नए जाट चेहरे की खोज
पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के कई बड़े जाट चेहरे चुनाव हार गए। इनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओपी धनखड़, सुभाष बराला और पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु शामिल हैं। यहां तक कि जेजेपी छोड़कर भाजपा में आए देवेंद्र बबली भी चुनाव हार गए। इन पराजयों ने भाजपा को मजबूर कर दिया कि वह प्रदेश में नए, मजबूत और विश्वसनीय जाट नेताओं की तलाश करे। यही तलाश अब भगत धन्ना से जुड़े संगठनों, सामाजिक नेताओं और संतों के माध्यम से पूरी की जा रही है।
3. धर्म से सरल प्रवेश
राजनीति में धर्म का सहारा कोई नई बात नहीं है, लेकिन भाजपा ने हरियाणा में जाटों के लिए इसे बारीकी से अपनाया है। किसान आंदोलन और जाट आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सीधे बात करना पार्टी के लिए मुश्किल था। इसलिए धार्मिक आस्था और भक्ति के जरिए जाटों के दिल में जगह बनाने का प्रयास किया जा रहा है। भगत धन्ना इस रणनीति में एक आदर्श प्रतीक के रूप में उभरे हैं।
4. चुनावी परिणामों से मिली प्रेरणा
हाल ही में हुए चुनावों में भाजपा ने हरियाणा में जाट बहुल इलाकों में सात सीटें जीती हैं, जिनमें बागड़ और देशवाल बेल्ट शामिल हैं। इसके अलावा पंजाबी और शहरी बहुल जीटी रोड बेल्ट में भी पार्टी ने सात नई सीटों पर जीत हासिल की है। यह संकेत हैं कि भाजपा की ‘जाट बनाम नॉन-जाट’ की रणनीति के बावजूद, अब वह जाट बहुल क्षेत्रों में भी प्रभावी हो सकती है — बशर्ते रणनीति सही हो।
उचाना कार्यक्रम का महत्व
20 अप्रैल को उचाना में आयोजित होने वाला कार्यक्रम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा के लिए एक बड़ा राजनीतिक स्टेज होगा। यहाँ पर हजारों की संख्या में जाट समुदाय के लोग जुटेंगे, और भाजपा इस मौके को अपने एजेंडे को मजबूती देने के लिए इस्तेमाल करेगी।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की उपस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह आयोजन भाजपा के लिए कितना अहम है। सुभाष बराला इस पूरे आयोजन के मास्टरमाइंड माने जा रहे हैं, और उनके नेतृत्व में भाजपा इस आयोजन के जरिए अपने मिशन को जमीनी हकीकत में बदलना चाहती है।
धर्म और राजनीति का संगम: नए युग की शुरुआत?
धर्म और राजनीति का यह मिलन हरियाणा की सियासत में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। इससे पहले भी कई बार धार्मिक संतों और सामाजिक नेताओं ने राजनीति में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इस बार भाजपा ने जिस सुनियोजित तरीके से भगत धन्ना को केंद्र में लाकर मिशन जाट को आकार दिया है, वह अभूतपूर्व है।
भाजपा को उम्मीद है कि इससे न केवल उसके मौजूदा कैडर को संबल मिलेगा, बल्कि जाट समुदाय में एक नई लहर भी पैदा होगी जो पार्टी के पक्ष में होगी।
The Airnews | चंडीगढ़
रिपोर्टर: Yash, The Airnews
हरियाणा की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है, और इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ‘मिशन जाट’ के तहत एक नई रणनीति अपनाई है। यह रणनीति न तो महज चुनावी है और न ही केवल जातीय समीकरणों पर आधारित है, बल्कि इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का भी सहारा लिया जा रहा है। राजस्थान के प्रसिद्ध संत धन्ना भगत अब हरियाणा की राजनीति में भाजपा के नए प्रतीक बनकर उभरे हैं।
धर्म और जाति की समरसता के साथ मिशन की शुरुआत
भाजपा लंबे समय से हरियाणा में जाट समुदाय के बीच अपनी साख मजबूत करने की कोशिश कर रही है। लेकिन किसान आंदोलन, जाट आरक्षण आंदोलन जैसे मुद्दों के कारण पार्टी को लगातार इस वर्ग से दूरी महसूस होती रही है। अब भाजपा ने इससे निपटने के लिए नया रास्ता चुना है — धर्म और आस्था।
भाजपा के रणनीतिकारों ने महसूस किया कि धर्म एक ऐसा माध्यम हो सकता है जिससे जाट समुदाय के बीच बिना प्रतिरोध के प्रवेश किया जा सकता है। यही वजह है कि पार्टी ने धन्ना भगत को केंद्र में रखकर इस मिशन की नींव रखी है।
कौन हैं भगत धन्ना?
भगत धन्ना राजस्थान में जन्मे एक प्रसिद्ध वैष्णव संत थे। उनकी भक्ति, सरलता और सामाजिक समरसता की भावना ने उन्हें लोकमान्यता दिलाई। वे भगवान शिव और विष्णु दोनों के उपासक रहे हैं। हरियाणा में उनके लाखों अनुयायी हैं, विशेषकर जाट समुदाय में।
धन्ना भगत के अनुयायी आज भी धनावंशी स्वामी के रूप में पहचाने जाते हैं। हरियाणा के हिसार, रोहतक, कैथल और अन्य जिलों में धन्ना भगत के नाम पर मंदिर, आश्रम और समाजिक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। सिख धर्म के ग्रंथों में भी उनका उल्लेख है। उनके भक्तों का मानना है कि वे धर्म और जाति से ऊपर उठकर समर्पण और सेवा के प्रतीक थे।
राजनीति में भगत धन्ना का प्रवेश
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो भाजपा अब धन्ना भगत के माध्यम से जाट बहुल इलाकों में घुसपैठ कर रही है। पिछले दो वर्षों से राजस्थान और हरियाणा की सीमा पर स्थित जिलों में धन्ना भगत की जयंती पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अब 2025 में, 20 अप्रैल को उचाना (जिला जींद) में एक विशाल आयोजन होने जा रहा है, जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे।
मिशन की जिम्मेदारी सुभाष बराला को
भाजपा ने इस रणनीति को सफल बनाने के लिए एक अनुभवी और जाट समुदाय से जुड़े नेता को जिम्मेदारी सौंपी है — राज्यसभा सांसद सुभाष बराला। बराला पहले हरियाणा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं। जाट समुदाय में उनकी अच्छी पैठ है और उन्हें एक संयमित और रणनीतिक नेता माना जाता है।
मिशन जाट के पीछे BJP की रणनीतिक सोच
1. 22% जाट वोट बैंक को साधने की जरूरत
हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी लगभग 22% है, जो राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। हालांकि परंपरागत रूप से जाट कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के समर्थक रहे हैं। बीजेपी के पास भी एक मजबूत जाट वोट बैंक मौजूद है, जिसे पार्टी ‘कैडर’ मानती है। लेकिन हाल के वर्षों में यह कैडर भी डगमगाता नजर आया है। इसी को बचाने और बढ़ाने के लिए यह मिशन शुरू किया गया है।
2. नए जाट चेहरे की खोज
पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के कई बड़े जाट चेहरे चुनाव हार गए। इनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओपी धनखड़, सुभाष बराला और पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु शामिल हैं। यहां तक कि जेजेपी छोड़कर भाजपा में आए देवेंद्र बबली भी चुनाव हार गए। इन पराजयों ने भाजपा को मजबूर कर दिया कि वह प्रदेश में नए, मजबूत और विश्वसनीय जाट नेताओं की तलाश करे। यही तलाश अब भगत धन्ना से जुड़े संगठनों, सामाजिक नेताओं और संतों के माध्यम से पूरी की जा रही है।
3. धर्म से सरल प्रवेश
राजनीति में धर्म का सहारा कोई नई बात नहीं है, लेकिन भाजपा ने हरियाणा में जाटों के लिए इसे बारीकी से अपनाया है। किसान आंदोलन और जाट आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सीधे बात करना पार्टी के लिए मुश्किल था। इसलिए धार्मिक आस्था और भक्ति के जरिए जाटों के दिल में जगह बनाने का प्रयास किया जा रहा है। भगत धन्ना इस रणनीति में एक आदर्श प्रतीक के रूप में उभरे हैं।
4. चुनावी परिणामों से मिली प्रेरणा
हाल ही में हुए चुनावों में भाजपा ने हरियाणा में जाट बहुल इलाकों में सात सीटें जीती हैं, जिनमें बागड़ और देशवाल बेल्ट शामिल हैं। इसके अलावा पंजाबी और शहरी बहुल जीटी रोड बेल्ट में भी पार्टी ने सात नई सीटों पर जीत हासिल की है। यह संकेत हैं कि भाजपा की ‘जाट बनाम नॉन-जाट’ की रणनीति के बावजूद, अब वह जाट बहुल क्षेत्रों में भी प्रभावी हो सकती है — बशर्ते रणनीति सही हो।
उचाना कार्यक्रम का महत्व
20 अप्रैल को उचाना में आयोजित होने वाला कार्यक्रम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा के लिए एक बड़ा राजनीतिक स्टेज होगा। यहाँ पर हजारों की संख्या में जाट समुदाय के लोग जुटेंगे, और भाजपा इस मौके को अपने एजेंडे को मजबूती देने के लिए इस्तेमाल करेगी।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की उपस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह आयोजन भाजपा के लिए कितना अहम है। सुभाष बराला इस पूरे आयोजन के मास्टरमाइंड माने जा रहे हैं, और उनके नेतृत्व में भाजपा इस आयोजन के जरिए अपने मिशन को जमीनी हकीकत में बदलना चाहती है।
धर्म और राजनीति का संगम: नए युग की शुरुआत?
धर्म और राजनीति का यह मिलन हरियाणा की सियासत में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। इससे पहले भी कई बार धार्मिक संतों और सामाजिक नेताओं ने राजनीति में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इस बार भाजपा ने जिस सुनियोजित तरीके से भगत धन्ना को केंद्र में लाकर मिशन जाट को आकार दिया है, वह अभूतपूर्व है।
भाजपा को उम्मीद है कि इससे न केवल उसके मौजूदा कैडर को संबल मिलेगा, बल्कि जाट समुदाय में एक नई लहर भी पैदा होगी जो पार्टी के पक्ष में होगी।