
हरियाणा में शिक्षकों की नौकरी पर मंडराया संकट: टीजीटी-पीजीटी अध्यापकों ने बरवाला में किया जोरदार प्रदर्शन, कैबिनेट मंत्री रणवीर गंगवा को सौंपा मांग पत्र
Edit by: Yash | The Airnews | हिसार, हरियाणा
हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर से विवादों और आंदोलनों के केंद्र में आ गई है। इस बार मामला हरियाणा कौशल रोजगार निगम (HKRN) के अंतर्गत कार्यरत टीजीटी (Trained Graduate Teacher) और पीजीटी (Post Graduate Teacher) अध्यापकों का है, जिन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के सेवा से हटाया जा रहा है। इस निर्णय के विरोध में रविवार को हरियाणा कौशल शिक्षक संगठन ने हिसार जिले के बरवाला में जोरदार प्रदर्शन किया और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री रणवीर सिंह गंगवा को ज्ञापन सौंपकर अपनी मांगें रखीं।
क्या है पूरा मामला?
हरियाणा सरकार ने बीते वर्षों में कौशल रोजगार निगम के तहत विभिन्न विभागों में अनुबंध पर कर्मचारियों की नियुक्ति की थी, जिनमें शिक्षा विभाग में टीजीटी और पीजीटी अध्यापक भी शामिल थे। इन शिक्षकों को अल्पकालीन अनुबंध के आधार पर स्कूलों में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया था। इनका दावा है कि सरकार ने चुनावी घोषणा के दौरान नौकरी की गारंटी का वादा किया था, लेकिन अब उन्हें बिना ठोस कारण के हटा दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने दिया था वादा
प्रदर्शन में शामिल हरियाणा कौशल शिक्षक संगठन के पदाधिकारियों — खुशी राम, मंजीत और अन्य ने बताया कि चुनावों से पूर्व मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सार्वजनिक मंच से कहा था कि HKRN के माध्यम से लगे किसी भी कर्मचारी को हटाया नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री ने यह भी वादा किया था कि इन कर्मचारियों को स्थायी नौकरी के विकल्पों पर विचार किया जाएगा। लेकिन अब शिक्षा विभाग के निर्देशों के अनुसार, बड़ी संख्या में अध्यापकों को अचानक हटा दिया गया है।
छात्रों की शिक्षा भी प्रभावित
HKRN अध्यापकों के हटाए जाने से न केवल उनके परिवार की आजीविका पर संकट आ गया है, बल्कि स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार, प्रदेश के अनेक सरकारी स्कूल पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। कई स्थानों पर एक ही शिक्षक को दो से तीन कक्षाओं की जिम्मेदारी दी जाती है। ऐसे में यदि टीजीटी और पीजीटी को अचानक हटा दिया जाता है, तो पढ़ाई का स्तर और गिर जाएगा।
प्रदर्शन की मुख्य मांगे
बरवाला में हुए प्रदर्शन के दौरान संगठन ने अपनी मुख्य मांगे निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कीं:
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सभी HKRN अध्यापकों की नौकरी को सुरक्षित किया जाए।
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इन शिक्षकों को स्थायी नियुक्ति दी जाए या अन्य स्कूलों में समायोजित किया जाए।
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प्रदेशभर के स्कूलों में फैली शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए इन अध्यापकों को यथावत रखा जाए।
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सरकारी वादों को गंभीरता से लागू किया जाए और CM द्वारा किए गए वादों को सम्मान दिया जाए।
कैबिनेट मंत्री को सौंपा गया ज्ञापन
हरियाणा कौशल शिक्षक संगठन के सदस्य एकजुट होकर मंत्री रणवीर गंगवा से मिलने पहुंचे और उन्हें ज्ञापन सौंपा। संगठन के नेताओं ने मंत्री से मांग की कि वह इस मुद्दे को मुख्यमंत्री तक पहुंचाएं और जल्द ही समाधान निकलवाएं। मंत्री गंगवा ने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त किया कि उनकी बात सरकार तक पहुंचाई जाएगी और विचार किया जाएगा कि किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय न हो।
नौकरी से निकाले गए शिक्षकों की आपबीती
बरवाला प्रदर्शन में शामिल कई शिक्षकों ने मीडिया से बातचीत करते हुए अपनी भावनाएं साझा कीं। एक टीजीटी शिक्षक, सीमा देवी ने कहा, “हमने स्कूलों में पूरी निष्ठा से पढ़ाया है। बच्चों को बोर्ड परीक्षा की तैयारी कराई, एक्स्ट्रा क्लास लीं और कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। लेकिन अब अचानक हमें रिलीव कर दिया गया है। ये सरासर अन्याय है।”
वहीं हिसार से आए पीजीटी अध्यापक रविंद्र कुमार ने कहा, “नियमित नौकरी तो मिलती नहीं है, और अब संविदा पर मिली नौकरी भी खतरे में है। हमारा भविष्य क्या होगा? हमारे घर की जिम्मेदारियों का क्या होगा? सरकार से बस यही विनती है कि हमें हटाने का निर्णय तुरंत वापस लिया जाए।”
क्या कहते हैं शिक्षा विशेषज्ञ?
शिक्षा नीति से जुड़े जानकारों का मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में अनुबंध आधारित नीति दीर्घकालिक समाधान नहीं है। टीचिंग जैसे कार्य में स्थायित्व और निरंतरता की आवश्यकता होती है। अक्सर देखा गया है कि संविदा पर रखे गए अध्यापक पूरी लगन से कार्य करते हैं, लेकिन अस्थिरता उनके मनोबल को गिरा देती है।
हरियाणा यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आर.के. शर्मा का कहना है, “सरकार को चाहिए कि वह कम से कम शिक्षा विभाग में स्थायी नियुक्तियों को बढ़ावा दे। जब शिक्षक ही असुरक्षित महसूस करेंगे तो वे कैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देंगे?”
सरकार के रुख पर उठ रहे सवाल
HKRN के तहत लगे अन्य विभागों के कर्मचारियों ने भी आशंका जाहिर की है कि आने वाले समय में उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार हो सकता है। इससे सरकार की नीतियों और वादों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर हर बार चुनावी वादे केवल मंचों तक ही सीमित रहेंगे, तो आम जनता का विश्वास लोकतंत्र से डगमगा सकता है।