
हरियाणा युवा कांग्रेस अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा कोर्ट से बरी: जानिए पूरा मामला, राजनीतिक पृष्ठभूमि और अदालती फैसला
The Airnews | Chandigarh
हरियाणा की राजनीति में हलचल मचाने वाले एक चर्चित मामले में युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा को पंचकूला की अदालत ने बरी कर दिया है। यह मामला वर्ष 2018 का है, जब बुद्धिराजा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दे पर विरोध दर्ज कराते हुए पंचकूला में अवैध होर्डिंग्स लगाए थे। इस मामले में कोर्ट ने हाल ही में सबूतों के अभाव में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। आइए जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या था, कोर्ट में क्या दलीलें पेश की गईं, और इससे हरियाणा की राजनीति में क्या संकेत मिलते हैं।
मामले की शुरुआत: विरोध और गिरफ्तारी की कहानी
2018 में हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम तब सामने आया जब दिव्यांशु बुद्धिराजा ने प्रदेश में बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मुखर विरोध जताया। उन्होंने पंचकूला के गवर्नमेंट कॉलेज, सेक्टर-1 में उस समय घुसपैठ की जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर युवाओं से संवाद करने पहुंचे थे। कॉलेज कैंपस में सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की गई, जिससे पुलिस और प्रशासन में अफरा-तफरी मच गई।
इस घटना के बाद बुद्धिराजा को गिरफ्तार किया गया और उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और कानून व्यवस्था भंग करने जैसे आरोपों में केस दर्ज किया गया। विरोध प्रदर्शन के बाद पंचकूला में ‘मनोहर लाल – जवाब दो’ जैसे पोस्टर और फ्लैक्स लगाए गए, जिनमें बेरोजगारी, सरकारी नौकरियों की स्थिति और युवा नीतियों पर सवाल खड़े किए गए थे।
अवैध होर्डिंग्स और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान का मामला
दर्ज एफआईआर के मुताबिक, नगर निगम के अधिकारियों ने शहर में 152 होर्डिंग्स को जब्त किया, जो कथित तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और बुद्धिराजा के समर्थन में लगाए गए थे। इन पर सीधे तौर पर मुख्यमंत्री को निशाना बनाते हुए बेरोजगारी और सरकारी नीतियों की आलोचना की गई थी। पंचकूला पुलिस ने इस कार्रवाई के बाद मामले को कोर्ट में भेजा।
मामले में कहा गया कि इन होर्डिंग्स के कारण सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा, साथ ही शहर की सुंदरता और शांति व्यवस्था भी प्रभावित हुई। इसे स्थानीय प्रशासन ने गंभीरता से लेते हुए बुद्धिराजा और अन्य के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति क्षति रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया।
कोर्ट से गैर-हाजिर रहने पर भगोड़ा घोषित
मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब दिव्यांशु बुद्धिराजा अदालत में पेश नहीं हुए। कोर्ट की ओर से बार-बार समन जारी किए गए, लेकिन हाजिरी न देने पर 3 जनवरी 2024 को पंचकूला सेक्टर-14 थाने में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 174A (कोर्ट में गैर-हाजिर रहने पर भगोड़ा घोषित करना) के तहत अलग से केस दर्ज कर लिया गया।
इसके बाद बुद्धिराजा ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) जेएमआईसी अरुणिमा चौहान की अदालत में सरेंडर किया और जमानत ली। यह वह समय था जब मामला फिर से मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया।
अदालत में चली लंबी सुनवाई: सबूतों की कमी सामने आई
इस केस में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाह सफाई निरीक्षक मदन लाल की गवाही को भी गंभीरता से सुना। उन्होंने बताया कि निगम ने 152 होर्डिंग्स को जब्त किया था, लेकिन उन्हें न तो पुलिस ने केस प्रॉपर्टी के रूप में अदालत में पेश किया और न ही फोटोग्राफिक साक्ष्य पेश किए गए।
अदालत ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि न तो ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बुद्धिराजा ने स्वयं ये होर्डिंग्स लगाए थे, और न ही इस बात की पुष्टि हो सकी कि कोई मजदूर या ठेकेदार उनके निर्देश पर काम कर रहा था। पूरा मामला महज इस बात पर आधारित था कि उस समय बुद्धिराजा NSUI के अध्यक्ष थे और प्रदर्शन में शामिल थे।
अंततः पंचकूला कोर्ट ने यह मानते हुए कि अभियोजन अपना पक्ष सिद्ध करने में असफल रहा, दिव्यांशु बुद्धिराजा को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और 2024 लोकसभा चुनाव में भूमिका
दिव्यांशु बुद्धिराजा हरियाणा कांग्रेस के युवा चेहरों में से एक हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी माने जाते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें करनाल से भाजपा प्रत्याशी और तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सामने मैदान में उतारा था।
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने बेरोजगारी, शिक्षा, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश की। शुरूआती रुझानों में वे खट्टर से आगे निकलते दिखे, लेकिन अंततः वे 2 लाख 19 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हार गए। खट्टर को जहां 6 लाख 98 हजार 992 वोट मिले, वहीं दिव्यांशु को 4 लाख 80 हजार से अधिक वोट मिले।
हालांकि, यह हार उनकी लोकप्रियता में कमी का संकेत नहीं मानी गई क्योंकि उन्होंने पूरे चुनाव में युवा और जनहित के मुद्दों को प्रमुखता दी।
भविष्य की राजनीति पर प्रभाव और संदेश
इस अदालती फैसले से न केवल दिव्यांशु बुद्धिराजा को बड़ी राहत मिली है, बल्कि कांग्रेस पार्टी के अंदर भी उनके पक्ष में सकारात्मक माहौल बना है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यह निर्णय न्याय प्रणाली में विश्वास को पुनः स्थापित करता है और यह स्पष्ट करता है कि विपक्ष के नेताओं को झूठे मामलों में फंसाकर राजनीति नहीं की जा सकती।
दिव्यांशु के बरी होने के बाद अब वे भविष्य में एक और मजबूती से प्रदेश की राजनीति में उभर सकते हैं। यह फैसला उन्हें एक नैतिक ताकत प्रदान करता है और आने वाले विधानसभा या लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।