एवरेस्ट से एल्ब्रुस तक, लेकिन अब नौकरी के लिए संघर्ष… हिसार की बेटी रीना भट्टी की सरकार से सीधी अपील
The Airnews | हिसार | रिपोर्टर: Yash
रीना भट्टी की उपलब्धियां देश का गौरव, लेकिन अब खुद के लिए सरकारी सहयोग की प्रतीक्षा
हरियाणा के हिसार जिले की बेटी रीना भट्टी ने पर्वतारोहण की दुनिया में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे किसी राष्ट्रगौरव से कम नहीं हैं। एवरेस्ट और ल्होत्से की दुर्गम चोटियों को मात्र 21 घंटे में फतेह करने वाली यह बेटी अब सरकारी पहचान और सहयोग के लिए सरकार से गुहार लगा रही है।
रीना भट्टी ने हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पत्र लिखते हुए अपनी उपलब्धियों के आधार पर सरकारी नौकरी और आर्थिक सहायता की मांग की है। उनका कहना है कि उन्होंने केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गौरव बढ़ाया है और अब उम्मीद है कि राज्य सरकार उनकी उपलब्धियों को अनदेखा नहीं करेगी।
ट्रैक्टर मिस्त्री की बेटी बनी अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोही
रीना भट्टी का जन्म और पालन-पोषण हिसार के बालक गांव में हुआ। एक सामान्य किसान और ट्रैक्टर मिस्त्री परिवार से संबंध रखने वाली रीना ने कठिनाइयों के बावजूद पर्वतारोहण जैसा कठिन क्षेत्र चुना और उसमें अपने साहस और मेहनत से असाधारण मुकाम हासिल किया।
उन्होंने न केवल माउंट एवरेस्ट, बल्कि माउंट ल्होत्से, माउंट एल्ब्रुस, माउंट अमा डबलाम, कांग यात्से, जो जोंगो जैसी विश्व प्रसिद्ध चोटियों को फतेह किया है। इतना ही नहीं, वे “डिप्रेशन अगेंस्ट रनिंग” जैसी विश्व की सबसे लंबी रिले रेस का भी हिस्सा रही हैं और 10,000 पुश-अप के साथ ऑक्सफोर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं।
मुख्यमंत्री को पत्र, नौकरी और आर्थिक सहायता की मांग
रीना भट्टी ने मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में स्पष्ट रूप से दो मुख्य मांगें रखी हैं:
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ग्रुप-ए स्तर की सरकारी नौकरी, जिससे उन्हें आगे के अभियानों के लिए सरकारी पहचान और सहायता प्राप्त हो सके।
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चार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद, जैसी राशि राज्य सरकार द्वारा पूर्व में अन्य खिलाड़ियों और कलाकारों को दी जा चुकी है।
रीना ने मुख्यमंत्री को ट्विटर (अब एक्स) पर टैग कर सार्वजनिक रूप से भी यह मांग उठाई है। उन्होंने कहा है कि उनके अभियान केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्र और राज्य के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं।
उपलब्धियां जो सरकारी सम्मान की पात्र हैं
रीना की उपलब्धियों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि उनका योगदान किसी राष्ट्रीय पुरस्कार या सरकारी सम्मान से कम नहीं है:
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20 घंटे 50 मिनट में माउंट एवरेस्ट और माउंट ल्होत्से की फतेह
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यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस को पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं से 24 घंटे में फतेह करना
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लद्दाख की कांग यात्से और जो जोंगो चोटियों को हरियाणा की पहली महिला के रूप में फतेह करना
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नेपाल की तकनीकी और खतरनाक चोटी माउंट अमा डबलाम को मात्र 5 दिन में चढ़ना
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10,000 पुश-अप का ऑक्सफोर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड
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डिप्रेशन के विरुद्ध भारत की सबसे लंबी रिले रेस में भागीदारी
इन उपलब्धियों के बावजूद रीना को अब तक सरकारी स्तर पर न तो कोई स्थायी नौकरी मिली है और न ही कोई विशेष वित्तीय सहायता।
बेटियों को सम्मान और समर्थन देने का समय
रीना का कहना है कि जब सरकार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और महिला सशक्तिकरण जैसे अभियान चला रही है, तो उसे यह भी देखना चाहिए कि उन बेटियों को कितना सम्मान और सहयोग मिल रहा है, जिन्होंने देश का नाम विश्व मंच पर रोशन किया है।
उन्होंने कहा है कि उनकी लड़ाई केवल नौकरी की नहीं, बल्कि एक बेटी के संघर्ष और सफलता को समाज और सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने की है। यदि सरकार ने उनका साथ दिया, तो यह केवल एक पर्वतारोही को नहीं, बल्कि भविष्य की कई बेटियों को रास्ता देगा।
दावों और वास्तविकता के बीच संघर्ष की तस्वीर
सरकारी योजनाएं और घोषणाएं अक्सर कागज़ों में सीमित रह जाती हैं। रीना भट्टी का मामला इसी का उदाहरण है। जब एक अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करने वाली बेटी को अपनी पहचान और अधिकार के लिए पत्र लिखना पड़े, तो यह स्थिति समाज और प्रशासन दोनों के लिए चिंतन का विषय है।