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Saturday, November 8, 2025

6 बच्चों के पिता ने की आत्महत्या: गरीबी से टूटा मन, ट्रेन के आगे कूदकर दी जान | 

6 बच्चों के पिता ने की आत्महत्या: गरीबी से टूटा मन, ट्रेन के आगे कूदकर दी जान | 

हरियाणा ( Sahil Kasoon ) नारनौल शहर से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है, जहां छह बच्चों के पिता ने आर्थिक तंगी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ से टूटकर आत्महत्या कर ली। यह घटना न केवल स्थानीय समाज को झकझोरने वाली है, बल्कि पूरे हरियाणा के प्रशासन और सामाजिक तंत्र के लिए एक चेतावनी भी है।

घटना का विवरण: ट्रेन के आगे कूदकर दी जान

नारनौल के माली टिब्बा क्षेत्र से संबंधित बिरू सिंह (उम्र 42 वर्ष) नामक व्यक्ति ने मंगलवार की रात सीआईए अंडरपास के ऊपर से गुजरती रेलवे लाइन पर सामने से आ रही ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। मृतक पेशे से कान की सफाई करने वाला एक साधारण मजदूर था और अत्यंत गरीब परिवार से संबंधित था।

घटना की सूचना मिलते ही जीआरपी मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर नागरिक अस्पताल पहुंचाया, जहां पोस्टमॉर्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया।

परिवार और आर्थिक स्थिति

बिरू सिंह की पत्नी और छह छोटे-छोटे बच्चे हैं। परिजनों ने बताया कि बिरू सिंह पिछले कुछ समय से मानसिक रूप से बेहद परेशान था। परिवार का पालन-पोषण कर पाना उसके लिए लगभग असंभव होता जा रहा था। उसकी कमाई इतनी नहीं थी कि वह रोजमर्रा की जरूरतें पूरी कर सके।

परिवार के एक सदस्य ने बताया, “वो हमेशा सोच में डूबा रहता था। बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित था। कई बार कहता था कि उसका जीने का कोई मतलब नहीं बचा।”

सामाजिक और प्रशासनिक उदासीनता की झलक

यह घटना केवल एक आत्महत्या नहीं, बल्कि एक संकेत है कि कैसे आज भी देश के कई हिस्सों में गरीब परिवार सामाजिक सुरक्षा तंत्र की नजरों से दूर संघर्षरत हैं। सरकारी योजनाएं, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बनी हैं, उन तक वास्तविक रूप से कितनी पहुंचती हैं यह एक बड़ा सवाल है।

बिरू सिंह जैसे लोगों के लिए न तो कोई सामाजिक सहायता थी, न ही कोई मनोवैज्ञानिक परामर्श। आज उसकी मौत के बाद यह सवाल उठता है कि क्या अगर समय रहते उसे सहारा मिला होता, तो आज वह जीवित होता?

मौके पर पहुंची जीआरपी और पुलिस की कार्यवाही

रेलवे ड्राइवर ने तत्काल घटना की जानकारी जीआरपी को दी। जीआरपी टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लिया और आसपास के लोगों से पूछताछ की। मृतक की पहचान होते ही पुलिस ने परिजनों को सूचना दी।

परिजनों के बयान के आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और इसे आत्महत्या मानते हुए जांच को आगे बढ़ा रही है। हालांकि अभी तक कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है।

मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया

इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कई स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने प्रशासन को आड़े हाथों लिया है। ‘जन कल्याण समिति नारनौल’ के अध्यक्ष रमेश यादव ने कहा, “यह आत्महत्या नहीं, व्यवस्था की विफलता है। जब एक पिता अपने बच्चों को खाना नहीं खिला सकता, तब वह आत्महत्या को ही एकमात्र रास्ता समझता है।”

मानसिक स्वास्थ्य और काउंसलिंग की कमी

हरियाणा जैसे विकसित राज्य में आज भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई प्रभावी नीति नहीं है। गरीब तबका, जो पहले ही रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ रहा होता है, उसके लिए मानसिक थकावट और चिंता को पहचानना और उपचार लेना लगभग असंभव है।

बिरू सिंह जैसे हजारों लोग आज भी इसी मानसिक बोझ के साथ जी रहे हैं। कई बार वे अपनी बात कह नहीं पाते, और अंततः आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं।

सरकार और समाज की भूमिका

इस घटना के बाद प्रशासनिक हलकों में भी हलचल मची है। स्थानीय विधायक और नगरपालिका चेयरमैन ने मृतक के परिवार के लिए आर्थिक सहायता और बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेने की बात कही है। हालांकि यह सब अब बहुत देर से हो रहा है।

इस घटना से एक बार फिर यह बात सामने आई है कि समाज और सरकार को मिलकर ऐसे परिवारों की पहचान कर समय रहते उनकी मदद करनी चाहिए। चाहे वह राशन योजना हो, मुफ्त शिक्षा हो, स्वरोजगार योजना हो या मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग – ये सभी सेवाएं धरातल तक पहुंचनी जरूरी हैं।

स्थानीय लोगों में गहरा शोक

माली टिब्बा और नई बस्ती मोहल्ले के लोग इस घटना से आहत हैं। बिरू सिंह को एक मेहनती और शांत स्वभाव के व्यक्ति के रूप में जाना जाता था। उसकी मौत ने मोहल्ले के हर व्यक्ति को झकझोर दिया है।

क्या कहता है कानून?

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या करना अपराध नहीं माना जाता, लेकिन यह एक सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा जरूर है। सरकार द्वारा आत्महत्या के मामलों में सामाजिक और चिकित्सकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है, लेकिन अभी भी जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की कमी है।

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