
कैथल के संगरौली गांव में नहर में डूबा युवक: मामा की मौत से था व्यथित, तीसरे दिन भी जारी है तलाश
The Airnews | Edit by: Yash
हरियाणा के कैथल जिले से एक बेहद मार्मिक घटना सामने आई है, जिसमें संगरौली गांव के पास सिरसा ब्रांच नहर में एक युवक डूब गया। यह युवक अपने मामा के निधन के बाद शोक प्रकट करने गांव आया था। बताया जा रहा है कि युवक मामा की मौत से गहरे दुख में था और संभवतः इसी मानसिक तनाव के चलते उसने नहर में छलांग लगा दी। दो दिन बीत चुके हैं लेकिन युवक का अब तक कोई सुराग नहीं मिला है। पुलिस व गोताखोरों की टीम लगातार तलाश में जुटी है, वहीं स्थानीय प्रशासन भी सक्रिय रूप से मोर्चा संभाले हुए है।
घटना का विवरण: कैसे डूबा युवक नहर में
घटना शनिवार शाम की है जब गुरमीत नामक युवक सिरसा ब्रांच नहर पर पहुंचा और कुछ समय बाद उसे राहगीरों ने पानी में डूबते देखा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार नहर में बहाव काफी तेज था, जिसके कारण कोई भी व्यक्ति समय पर उसे बचा नहीं पाया। देखते ही देखते युवक पानी में लापता हो गया और वहां अफरा-तफरी मच गई।
युवक की पहचान रोहेड़ा माजरा गांव निवासी गुरमीत के रूप में हुई है, जिसकी उम्र लगभग 22 वर्ष बताई जा रही है। वह मज़दूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था और अविवाहित था।
मामा की मौत का गहरा सदमा था
स्थानीय निवासी देवीदयाल संगरौली ने पुलिस को बताया कि गुरमीत का अपने मामा बंटी से बहुत गहरा लगाव था। कुछ दिन पहले बंटी की पानीपत क्षेत्र में नहर में डूबने से मृत्यु हो गई थी। उनका शव पोस्टमार्टम के बाद संगरौली गांव लाया गया था। गुरमीत यह खबर सुनते ही शोक प्रकट करने गांव पहुंचा। मामा की मौत ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया था। शनिवार की शाम वह नहर की ओर चला गया और वही आखिरी बार उसे जीवित देखा गया।
प्रशासन का त्वरित एक्शन: अधिकारियों ने संभाला मोर्चा
रविवार सुबह जब युवक की तलाश जारी रही तो मौके पर नायब तहसीलदार, पटवारी और थाना ढांड पुलिस सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे। उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और नहर में पानी का बहाव कम करने के आदेश दिए ताकि गोताखोरों को तलाश में आसानी हो सके।
गांव के ग्रामीणों की मदद से भी सर्च ऑपरेशन चलाया गया, लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने पहले दिन से ही स्थिति को गंभीरता से लिया है, लेकिन पानी का बहाव बहुत अधिक होने के कारण तलाश में परेशानी आ रही है।
गोताखोरों की टीम लगातार प्रयास में जुटी
ढांड थाना प्रभारी संजय कुमार ने बताया कि गुरमीत की तलाश में विशेष गोताखोर टीम को लगाया गया है। अब तक कई किलोमीटर के दायरे में नहर की छानबीन की जा चुकी है, लेकिन युवक का कुछ भी पता नहीं चल पाया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही युवक को खोज निकालने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।
गांव में छाया मातम, परिजन सदमे में
गुरमीत के परिवार और संगरौली गांव में गहरा शोक है। गांव के लोग युवक को शांत, मेहनती और मिलनसार मानते थे। परिजन अभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। गुरमीत के पिता ने कहा, “हमें समझ नहीं आ रहा कि गुरमीत ने ऐसा कदम क्यों उठाया। मामा की मौत ने उसे भीतर से तोड़ दिया था। हम सब उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वह सुरक्षित मिले, लेकिन हर बीतता घंटा चिंता बढ़ा रहा है।”
समाज में भावनात्मक जुड़ाव और मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल
गुरमीत की यह घटना न केवल व्यक्तिगत दुख की कहानी है, बल्कि समाज को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व की ओर भी इंगित करती है। आज भी ग्रामीण और मध्यम वर्गीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जाती। गुरमीत जैसे लाखों युवा हैं जो भावनात्मक सदमे से गुजरते हैं लेकिन उन्हें सुनने वाला कोई नहीं होता।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि गुरमीत की स्थिति को समय रहते समझा जाता, उससे बात की जाती या परामर्श दिया जाता, तो शायद वह यह कदम नहीं उठाता।
पुलिस का बयान: जल्द मिलेगी सफलता
ढांड थाना प्रभारी संजय कुमार ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “हमारी टीमें लगातार सर्च ऑपरेशन में लगी हैं। नहर की स्थिति को देखते हुए यह कार्य मुश्किल है, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। गुरमीत को ढूंढ निकालना हमारी प्राथमिकता है।”
स्थानीय लोगों ने जताई चिंता
गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने प्रशासन से अपील की है कि नहर जैसे स्थानों पर सुरक्षा के लिए बैरिकेडिंग या चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, “आज गुरमीत है, कल कोई और हो सकता है। हमें सिर्फ प्रशासन नहीं, अपने समाज में भी एक बदलाव लाना होगा, जहां लोग एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और उन्हें समय पर सहारा दें।”
क्या कहती है यह घटना?
गुरमीत की यह दुखद घटना एक सामाजिक संदेश भी देती है कि मानसिक और भावनात्मक पीड़ा को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
सिर्फ आर्थिक मदद ही नहीं, भावनात्मक समर्थन और संवेदना भी उतनी ही ज़रूरी है।
परिवारों, स्कूलों और समाज को इस दिशा में प्रयास करना होगा कि युवाओं के भीतर की भावनाओं को समय पर समझा जा सके।