सोनीपत में सिंचाई विभाग में घोटाला: नहर से मिट्टी और पानी की चोरी, कर्मचारियों ने आंदोलन की चेतावनी दी

सोनीपत में सिंचाई विभाग में घोटाला: नहर से मिट्टी और पानी की चोरी, कर्मचारियों ने आंदोलन की चेतावनी दी
The Airnews | सोनीपत
हरियाणा के सोनीपत जिले में सिंचाई विभाग से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है जिसने न केवल प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर किया है बल्कि सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घोटाला नहर की पटरी से मिट्टी की अवैध खुदाई और नहर के पानी की चोरी से जुड़ा है, जिससे सरकारी खजाने को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। कर्मचारियों ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई है और अब आंदोलन तथा भूख हड़ताल का ऐलान किया गया है।
घोटाले का खुलासा कैसे हुआ?
यह घोटाला तब सामने आया जब सिंचाई विभाग के ही दो कर्मचारी – सिलक राम मलिक और राजेश धनखड़, जो कैनाल गार्ड के पद पर कार्यरत हैं – ने इसकी पूरी जानकारी, सबूतों के साथ यूनियन के माध्यम से विभागीय अधिकारियों को सौंपी। उन्होंने बताया कि मल्ला माजरा से नाहरी गांव तक लगभग 2 एकड़ क्षेत्र में नहर की पटरी से लगभग 2 फुट गहरी मिट्टी अवैध रूप से उठाकर लाखों रुपये में बेची गई। इसके अतिरिक्त नहर पर अवैध पंप सेट लगाकर किसानों को नहर का पानी चोरी करके सप्लाई किया गया।
सिर्फ मिट्टी ही नहीं, बल्कि पानी की चोरी भी एक संगठित माफिया के माध्यम से की गई। इन कार्यों में विभागीय जेई प्रदीप डांगी की मिलीभगत सामने आई है और साथ ही जमीन मालिक भीम को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है। यूनियन ने इस पूरे मामले के वीडियो साक्ष्य जुटाए और मंडल अभियंता, परिमंडल अध्यक्ष और प्रमुख अभियंता को इसकी विस्तृत शिकायत सौंपी।
कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
जब यह मामला उजागर हुआ तो संबंधित जेई प्रदीप डांगी ने आनन-फानन में पुलिस में अज्ञात लोगों के खिलाफ शिकायत दे दी, जिससे प्रतीत होता है कि यह कार्रवाई सिर्फ लीपापोती के लिए की गई थी। आश्चर्य की बात यह है कि इतने ठोस सबूत होने के बावजूद अब तक किसी अधिकारी या माफिया के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
जेई प्रदीप डांगी की स्वीकारोक्ति
प्रदीप डांगी ने खुद इस बात को स्वीकारा है कि नहर से मिट्टी की चोरी हुई है और पंप सेट लगाकर पानी की अवैध निकासी भी की गई है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह सब उनके संज्ञान में बाद में आया और जैसे ही उन्हें जानकारी मिली, उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दी। यह बयान संदेहास्पद है क्योंकि यदि कोई अधिकारी ऐसी अवैध गतिविधियों को रोकने में असमर्थ है, तो उसकी भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
प्रशासन की चुप्पी और गहराता शक
यूनियन पदाधिकारियों का कहना है कि यह भ्रष्टाचार एक लंबी अवधि से चला आ रहा है, जिसमें विभाग के निचले से लेकर उच्च अधिकारियों तक की मिलीभगत है। मिट्टी की चोरी और पानी की अवैध सप्लाई से न केवल सरकार को वित्तीय नुकसान हुआ है, बल्कि नहर की संरचना भी कमजोर हो गई है, जिससे भविष्य में इसके टूटने का खतरा बना हुआ है। यह भी कहा गया है कि इस घोटाले का भंडाफोड़ करने वाले कर्मचारियों को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं।
यूनियन की तीन प्रमुख मांगे
हरियाणा गवर्नमेंट पीडब्ल्यूडी मैकेनिकल वर्कर यूनियन और सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने सरकार के समक्ष तीन प्रमुख मांगे रखी हैं:
- गहन जांच: इस पूरे घोटाले की निष्पक्ष और गहन जांच की जाए। दोषी अधिकारियों और माफियाओं के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
- भ्रष्टाचार पर लगाम: सिंचाई विभाग में वर्षों से चल रहे भ्रष्टाचार की जड़ को समाप्त किया जाए।
- Whistleblowers की सुरक्षा: भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे बेखौफ होकर अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें।
धरना और भूख हड़ताल की चेतावनी
यूनियन ने स्पष्ट किया है कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर शीघ्र और ठोस कदम नहीं उठाए, तो वे 15 अप्रैल 2025 से जल संसाधन विभाग, दिल्ली जल बोर्ड कार्यालय के सामने धरना-प्रदर्शन और भूख हड़ताल करेंगे। यूनियन की चेतावनी है कि यह आंदोलन तब तक चलेगा जब तक दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती।
प्रशासन की अग्निपरीक्षा
अब इस पूरे प्रकरण ने सरकार और प्रशासन को एक कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। यदि समय रहते दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती और भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने की दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए जाते, तो यह न केवल सरकारी व्यवस्था की साख को प्रभावित करेगा, बल्कि अन्य कर्मचारियों के मनोबल को भी गिराएगा।
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दे और जो कर्मचारी अपने कर्तव्य से ईमानदारी निभा रहे हैं, उन्हें सम्मान और सुरक्षा प्रदान की जाए।
जनता की नजरें प्रशासन पर
सोनीपत का यह मामला अब आम जनता की नजर में आ चुका है। लोगों को यह जानने की उत्सुकता है कि क्या प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष जांच करेगा या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। यह घोटाला न केवल एक आर्थिक अपराध है बल्कि एक सामाजिक और प्रशासनिक गिरावट का संकेत भी है।




