क्या सच में ईवीएम लोकतंत्र को खत्म कर रही है? भिवानी में जेल भरो आंदोलन से उठी भारत बंद की चेतावनी!

क्या सच में ईवीएम लोकतंत्र को खत्म कर रही है? भिवानी में जेल भरो आंदोलन से उठी भारत बंद की चेतावनी!
The Airnews | रिपोर्टर: Yash | स्थान: भिवानी, हरियाणा | अपडेटेड: कुछ ही क्षण पहले
भूमिका: लोकतंत्र बनाम ईवीएम – नया संघर्ष
देश में लोकतंत्र का उत्सव चुनावों के रूप में मनाया जाता है, लेकिन जब उसी प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे, तो यह केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि चेतावनी बन जाता है। हरियाणा के भिवानी जिला मुख्यालय पर भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा “जेल भरो आंदोलन” किया गया, जिसमें ईवीएम मशीनों के विरोध और सरकार की कार्यशैली पर तीखे सवाल उठाए गए। इस विरोध ने न केवल भीड़ को झकझोरा, बल्कि 1 जुलाई को भारत बंद का एलान कर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
भारत मुक्ति मोर्चा: कौन हैं ये लोग जो लोकतंत्र के नाम पर जेल जाने को तैयार हैं?
भारत मुक्ति मोर्चा एक राष्ट्रव्यापी संगठन है, जो विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर आंदोलन करता है। यह संगठन विशेष रूप से वंचित, अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी समुदायों की आवाज़ उठाने में अग्रणी रहा है। भिवानी में हुए इस जेल भरो आंदोलन में भी इसी संगठन के कार्यकर्ताओं ने सरकार की “मनमानी” और “प्रजातांत्रिक व्यवस्था के दमन” का आरोप लगाया।
ईवीएम के खिलाफ बिगुल: लोकतंत्र की हत्या का आरोप
आंदोलनकारियों ने खुलकर कहा कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) ने बंधक बना लिया है। उनका मानना है कि:
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ईवीएम मशीनों के जरिए चुनाव परिणामों में हेराफेरी संभव है।
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सत्ता में आने वाली सरकारें इन्हीं मशीनों का दुरुपयोग कर रही हैं।
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देश में बैलट पेपर की पारदर्शिता को जानबूझकर खत्म किया गया है।
राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा के प्रदेश चेयरमैन दौलत वर्मा ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र के नाम पर हो रहे इस डिजिटल खेल को अब सहन नहीं किया जाएगा।
सरकार की कार्यशैली पर सवाल: मनमानी और धार्मिक प्रताड़ना का आरोप
प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए:
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धार्मिक आज़ादी का हनन – उन्होंने कहा कि चर्च में प्रार्थना करने पर ईसाई समुदाय के लोगों को परेशान किया जा रहा है।
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धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ – सरकार पर विशेष रूप से ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को टारगेट करने के आरोप लगे।
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लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने का प्रयास – शांतिपूर्ण आंदोलनों को नजरअंदाज कर सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
प्रमुख मांगे: क्या भारत मुक्ति मोर्चा की मांगें वाजिब हैं?
भारत मुक्ति मोर्चा ने सरकार से कई प्रमुख मांगें रखीं, जिनमें शामिल हैं:
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ईवीएम मशीन हटाकर बैलट पेपर से चुनाव कराना।
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जातिगत जनगणना कराना।
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निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोकना।
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कृषि उत्पादों की एमएसपी पर 100% खरीदी सुनिश्चित करना।
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बोधगया विहार से अवैध कब्जा हटवाना।
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धार्मिक प्रताड़ना पर अंकुश लगाना।
ये सभी मांगे समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं से जुड़ी हैं और इन पर देशव्यापी बहस की ज़रूरत भी है।
जेल भरो आंदोलन: गिरफ्तारी देकर दिया सरकार को सीधा संदेश
प्रदर्शनकारियों ने शांतिपूर्वक गिरफ्तारियां दीं और प्रशासन से यही कहा – “हम डरेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल भी जाएंगे।” भिवानी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को कुछ समय के लिए हिरासत में लिया और बाद में छोड़ दिया।
यह गिरफ्तारी केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि यह एक संदेश था – “अब चुप नहीं बैठेंगे।”
1 जुलाई को भारत बंद: क्या होगा असर?
दौलत वर्मा ने मंच से ऐलान किया कि अगर सरकार ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो 1 जुलाई को पूरे भारत में बंद का आयोजन किया जाएगा। उनका कहना था कि यह बंद किसी एक पार्टी का नहीं, बल्कि आम नागरिकों की आवाज़ है।
यदि ये आंदोलन वृहद रूप लेता है, तो यह आने वाले चुनावों और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
राजनीतिक विश्लेषण: क्या ईवीएम विरोध केवल भावनात्मक मुद्दा है या रणनीतिक हथियार?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि:
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ईवीएम पर उठ रहे सवाल केवल तकनीकी नहीं, बल्कि विश्वास और पारदर्शिता के सवाल हैं।
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विपक्षी दलों के लिए यह मुद्दा जनता के बीच विश्वास बहाली का माध्यम बन सकता है।
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अगर सरकार इन मांगों को दरकिनार करती है, तो इसका असर सीधे-सीधे जनता के बीच अविश्वास के रूप में सामने आ सकता है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया: शांति बनी रही, लेकिन सतर्कता बढ़ाई गई
भिवानी जिला प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित रखा। पुलिस की तैनाती आंदोलन स्थल पर की गई थी। हालांकि, किसी भी प्रकार की हिंसा या तोड़फोड़ की सूचना नहीं है। प्रशासन का कहना है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन आगामी 1 जुलाई के भारत बंद को लेकर सतर्कता बढ़ाई जा रही है।




