गुरुग्राम ज़मीन घोटाले में रॉबर्ट वाड्रा ED ऑफिस पहुंचे: जनता की आवाज़ उठाने पर दबाव डालने का आरोप
The Airnews | रिपोर्ट: यश
गुरुग्राम ज़मीन घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा एक बार फिर जांच एजेंसी के निशाने पर हैं। मंगलवार को वाड्रा दिल्ली स्थित प्रवर्तन निदेशालय (ED) के कार्यालय पैदल पहुंचे। यह पेशी शिकोहपुर ज़मीन घोटाले में दूसरे समन के बाद हुई है। वाड्रा की यह प्रस्तुति राजनीतिक सरगर्मी के बीच महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
पैदल ED दफ्तर पहुंचे वाड्रा
रॉबर्ट वाड्रा इस बार ED कार्यालय तक पैदल चले। उनके साथ कई समर्थक और कांग्रेसी कार्यकर्ता भी मौजूद थे। इस दौरान “जब जब मोदी डरता है, ईडी को आगे करता है” जैसे नारे लगाए गए। वाड्रा ने प्रेस से बातचीत करते हुए कहा, “जब भी मैं लोगों की आवाज़ उठाता हूं, सरकार मुझे दबाने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल करती है। मैं हमेशा हर सवाल का जवाब देता रहा हूं और देता रहूंगा।”
पहले समन पर नहीं हुए थे पेश
8 अप्रैल 2025 को वाड्रा को पहला समन भेजा गया था, लेकिन वह तब पेश नहीं हुए। इसके बाद ईडी ने उन्हें दूसरा समन जारी कर मंगलवार को कार्यालय में उपस्थित होने के लिए कहा। यह समन गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में जमीन सौदे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस को लेकर भेजा गया था।
क्या है शिकोहपुर ज़मीन घोटाला?
यह मामला साल 2008 का है जब रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से 3.5 एकड़ ज़मीन 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी थी। उस समय हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे। सरकार ने उसी साल इस ज़मीन में से 2.7 एकड़ पर व्यवसायिक कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस वाड्रा की कंपनी को दे दिया।
कुछ ही महीनों में वाड्रा की कंपनी ने इस ज़मीन को रियल एस्टेट कंपनी DLF को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया। यानि लगभग 50 करोड़ रुपये का सीधा लाभ हुआ।
आईएएस अधिकारी ने म्यूटेशन रद्द किया
2012 में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस सौदे में अनियमितताओं का हवाला देते हुए ज़मीन का म्यूटेशन रद्द कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सौदा नियमों के खिलाफ था और इसमें भ्रष्टाचार की आशंका है। खेमका की इस कार्रवाई के बाद यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बन गया था।
2018 में दर्ज हुई FIR
वर्ष 2018 में हरियाणा पुलिस ने रॉबर्ट वाड्रा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ IPC की धारा 420, 120B, 467, 468, 471 और बाद में 423 के तहत मामला दर्ज किया। आरोपों में धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और जालसाज़ी शामिल थी। FIR में जमीन के सौदे में नियमों का उल्लंघन और लाभ देने की साज़िश का उल्लेख था।
हुड्डा सरकार पर गंभीर आरोप
भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग कर वाड्रा की कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया। जमीन का सौदा फरवरी 2008 में हुआ और उसके ठीक एक महीने बाद हुड्डा सरकार ने उस ज़मीन के लिए आवासीय परियोजना का लाइसेंस जारी कर दिया। इसके दो महीने बाद ही DLF ने यह ज़मीन 58 करोड़ में खरीद ली। यानि सिर्फ चार महीने में वाड्रा की कंपनी को करीब 700 प्रतिशत का मुनाफा हुआ।
ईडी की जांच और मनी लॉन्ड्रिंग का शक
FIR के आधार पर ED ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की। एजेंसी को शक है कि इस सौदे में ज़मीन की कीमत असामान्य रूप से बढ़ाई गई और इसे अवैध रूप से उपयोग में लाया गया।
ईडी का कहना है कि ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज एक शेल कंपनी हो सकती है, जिसे सिर्फ भुगतान के लिए प्रयोग किया गया। चेक से जुड़ा भुगतान कभी बैंक में जमा नहीं किया गया, जो इस घोटाले को और संदिग्ध बनाता है।
DLF को 5,000 करोड़ का फायदा?
ईडी यह भी जांच कर रही है कि क्या हुड्डा सरकार ने DLF को अन्य प्रोजेक्ट्स में भी अनुचित लाभ पहुंचाया। रिपोर्ट्स के अनुसार, वजीराबाद इलाके में DLF को 350 एकड़ ज़मीन अलॉट की गई, जिससे कंपनी को कथित रूप से 5,000 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
विपक्ष का आरोप: “राजनीतिक बदले की कार्रवाई”
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह पूरा मामला राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है। वाड्रा की पेशी को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि जब भी विपक्ष जनता की आवाज़ उठाता है, सरकार उन्हें चुप कराने के लिए एजेंसियों का सहारा लेती है।
वाड्रा की सफाई: “हर सवाल का जवाब दूंगा”
रॉबर्ट वाड्रा ने स्पष्ट किया कि वह जांच में पूरा सहयोग देंगे और किसी भी कानूनी प्रक्रिया से भागेंगे नहीं। उन्होंने कहा, “मेरे पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है। मैं देश की न्याय प्रणाली पर पूरा विश्वास रखता हूं।”