सोनीपत ( Amit Dalal ): हरियाणा के सोनीपत जिले से भ्रष्टाचार और नशे के खिलाफ कार्रवाई को लेकर एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां विश्व विद्यालय परिसर में अफीम के पौधे मिलने के बाद गठित की गई SIT (विशेष जांच टीम) के इंस्पेक्टर को खुद भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। यह मामला न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि उच्च शिक्षा संस्थानों में बढ़ते अपराध की गंभीरता को भी उजागर करता है।
मामले की शुरुआत: वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन में 400 अफीम के पौधे
यह मामला उस समय सामने आया जब सोनीपत के राई क्षेत्र में स्थित World University of Design में पुलिस ने छापेमारी के दौरान लगभग 400 अफीम के पौधे बरामद किए। इस अप्रत्याशित खोज के बाद जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने तत्काल एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया, जिसमें एसीपी अजीत सिंह की अध्यक्षता में इंस्पेक्टर तेजराम और एक अन्य अधिकारी को शामिल किया गया।
SIT जांच के दौरान रिश्वत का घिनौना खेल
जांच के दौरान पुलिस की नजर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. संजय गुप्ता पर पड़ी। आरोप है कि संजय गुप्ता ने इस पूरे मामले में संलिप्त एक फरार सुपरवाइज़र को अपने घर में छिपा रखा था। इसी आधार पर इंस्पेक्टर तेजराम ने वीसी पर दबाव बनाना शुरू किया और 15 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस दबाव के आगे झुकते हुए अपने वकील के माध्यम से यह राशि इंस्पेक्टर तेजराम तक पहुंचाई। हालांकि यह रिश्वतखोरी ज्यादा समय तक छिपी नहीं रह सकी।
गुप्त सूचना से हुआ पर्दाफाश, उच्च अधिकारियों में मचा हड़कंप
सूत्रों के मुताबिक, इस पूरे लेन-देन की जानकारी धीरे-धीरे हरियाणा पुलिस के उच्चाधिकारियों तक पहुंच गई। इस सूचना को गंभीरता से लेते हुए एक अलग जांच टीम गठित की गई, जिसने इंस्पेक्टर तेजराम को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। साथ ही उन्हें तुरंत प्रभाव से निलंबित (Suspended) भी कर दिया गया।
पुलिस विभाग की साख पर सवाल
इस घटना ने हरियाणा पुलिस विभाग की साख पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए गठित की गई टीम का एक प्रमुख सदस्य ही खुद भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया। इससे न केवल जनता में अविश्वास पैदा होता है बल्कि पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न लगते हैं।
वाइस चांसलर की भूमिका भी संदेह के घेरे में
इस मामले में VC संजय गुप्ता की भूमिका भी अब संदेह के घेरे में है। उनके द्वारा फरार आरोपी को संरक्षण देने और रिश्वत देने जैसे गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। पुलिस विभाग ने संकेत दिए हैं कि इस पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच अब क्राइम ब्रांच या विजिलेंस को सौंपी जा सकती है।
SIT की विश्वसनीयता पर गंभीर असर
SIT जैसी विशेष जांच इकाइयों की गठन का मकसद पारदर्शिता और निष्पक्षता होता है। लेकिन जब ऐसी ही टीमों में शामिल अधिकारी भ्रष्ट आचरण करते हैं, तो आमजन का कानून और व्यवस्था पर से विश्वास उठ जाता है। यह मामला SIT की विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुंचाता है।
प्रशासन की अगली कार्रवाई
हरियाणा पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए आगामी कुछ दिनों में सभी संबंधित अधिकारियों से पूछताछ का निर्णय लिया है। सूत्रों की मानें तो कुछ और अधिकारी और कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।
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