केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव के सरस मेले का किया अवलोकन, सांस्कृतिक संध्या का किया शुभारंभ

चंडीगढ़, 2 फरवरी – केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री श्री मनोहर लाल ने कहा कि पवित्र सरस्वती नदी को हरियाणा की पावन धरा पर प्रवाहित करने के प्रयास 1986 से शुरू किए गए थे। इस अहम कार्य को लेकर ही 10 वर्ष पूर्व हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की स्थापना की गई। इन 10 वर्षों में बोर्ड के माध्यम से सरस्वती नदी के मार्ग पर जमीनों से कब्जा हटवाने के लिए करीब 80 प्रतिशत जमीन या तो दान में या फिर खरीद ली गई है। इस कार्य के पूरा होने के बाद सरस्वती नदी को फिर से प्रवाहित करने के प्रयास पूरे हो जाएंगे।

            केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री श्री मनोहर लाल आज पिहोवा सरस्वती तीर्थ पर हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की तरफ से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव के समापन समारोह के अवसर पर बोल रहे थे। इससे  पहले केन्द्रीय मंत्री मनोहर लाल ने हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की प्रदर्शनी के साथ-साथ सरस मेले का अवलोकन किया। उन्होंने  सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ भी किया। इस दौरान प्रदेशवासियों को बसंत पंचमी और सरस्वती जयंती की बधाई और शुभकामनाएं भी दी।

उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों से नदियों को पवित्र माना गया है और प्रकृति के पांच तत्वों को भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल को भगवान की संज्ञा देकर हमेशा पूजा जाता रहा है। इन पांचों तत्वों की पूजा करने से अच्छे संस्कार मिलते है और अच्छे संस्कारों से अच्छे समाज और देश की नीव रखी जा सकती है। इन्हीं तमाम विषयों को जहन में रखकर संस्कृति संस्कारों को हमेशा जिंदा रखने और युवा पीढ़ी को सांस्कृतिक विरासत को रूबरू करवाने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव, गीता महोत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

            उन्होंने कहा कि हरियाणा की धरा से बहने वाली पवित्र सरस्वती नदी के किनारे वेदों और पुराणों की रचना हुई। इसलिए इतिहास को देखते हुए सरकार ने बिलासपुर का नाम बदलकर महर्षि व्यास के नाम पर व्यासपुर और मुस्तजापुर का नाम बदलकर सरस्वती नगर का नाम रखा है। उन्होंने कहा कि सटेलाइट और अन्य वैज्ञानिक तथ्यों से अब साबित हो चुका है कि सरस्वती नदी का बहाव आदिबद्री से होकर हरियाणा से होते हुए रण ऑफ कच्छ तक पहुंचता है। इस सरस्वती नदी के मार्ग को खोजने के लिए डा. वांकडकर से उनकी बात हुई थी और 1986 में तीन दिन तक आदि बद्री से पिहोवा तक यात्रा की थी। इस नदी के किनारे ही पिंडदान और अस्थियों को विर्सजन किया जाता है।

            केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस क्षेत्र को देव भूमि भी कहा जाता है और अब लुप्त हो रहे इतिहास और संस्कृति को सहेजने के लगातार प्रयास किए जा रहे है। अब सरस्वती नदी को लेकर लगातार शोध चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इसी जनजागरण को लेकर महोत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

The Air News

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