सिरसा में DSP और भाजपा नेता विवाद: ऑन कैमरा माफी से उठे सवाल, दिग्विजय चौटाला और अखिलेश यादव ने बताया ‘पुलिस का अपमान’
प्रस्तावना
हरियाणा के सिरसा में मुख्यमंत्री नायब सैनी के कार्यक्रम के दौरान घटित एक प्रशासनिक घटना ने राज्य की राजनीति में तूफान ला दिया है। कार्यक्रम में मंच से एक भाजपा नेता को पुलिस द्वारा हटाने और फिर उस पुलिस अधिकारी को कैमरे पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए बाध्य किए जाने की घटना ने ना केवल पुलिस व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि विपक्ष को भी सरकार पर सीधा हमला करने का अवसर दे दिया है।
घटना का पूरा विवरण: मंच से हटाया गया भाजपा नेता
27 अप्रैल को सिरसा में मुख्यमंत्री नायब सैनी एक साइक्लोथॉन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे थे। इसी कार्यक्रम में उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल गणेशी लाल के बेटे और भाजपा नेता मनीष सिंगला भी शामिल हुए थे। कार्यक्रम स्थल पर ड्यूटी पर तैनात डीएसपी जितेंद्र राणा ने सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत मंच पर मौजूद मनीष सिंगला को हाथ पकड़कर नीचे उतार दिया। जब उन्होंने विरोध किया, तब भी डीएसपी ने नियमों का हवाला देते हुए मंच खाली करवाया।
माफी का वीडियो: पुलिस अधिकारी ने क्या कहा?
घटना के एक दिन बाद, एक वीडियो सामने आया जिसमें डीएसपी जितेंद्र राणा भाजपा नेता मनीष सिंगला के साथ एक सोफे पर बैठे हैं और उन्हें “माफीनामा” पढ़ते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो में डीएसपी कहते हैं:
“मुझे खेद है कि मेरे व्यवहार से आपको ठेस पहुंची। मेरा उद्देश्य केवल सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना था, किसी का अपमान करना नहीं।”
यह वीडियो वायरल हुआ और यहीं से शुरू हुआ असली विवाद।
दिग्विजय चौटाला की तीखी प्रतिक्रिया
जननायक जनता पार्टी (JJP) के नेता दिग्विजय चौटाला ने इस पूरे घटनाक्रम को “पुलिस अधिकारी का अपमान” बताया और कहा:
“हरियाणा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक जिम्मेदार अफसर से गुंडई स्टाइल में बैठाकर माफी मंगवाई गई। ये घटना पूरी पुलिस सेवा का मनोबल तोड़ने वाली है।”
उन्होंने हरियाणा के डीजीपी से इस पर तत्काल कार्रवाई करने की मांग की और पूछा कि अगर कल कोई और गलत काम करता है तो क्या पुलिस अफसर अब कार्रवाई कर पाएंगे?
🔹 अखिलेश यादव का निशाना: भाजपा पर तंज
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर ट्वीट किया:
“भाजपा एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी से ऑन कैमरा माफ़ी मंगवाकर पुलिस का मनोबल नहीं तोड़ रही है क्या? यह निंदनीय है।”
अखिलेश ने इसे लोकतंत्र और प्रशासनिक मर्यादाओं के खिलाफ बताया।
भाजपा नेता अमन चोपड़ा का पलटवार
पूर्व मुख्यमंत्री के ओएसडी जगदीश चोपड़ा के बेटे अमन चोपड़ा ने दिग्विजय चौटाला को जवाब देते हुए कहा:
“जब आप लोगों की सरकार थी, तब क्या होता था, यह जनता जानती है। हम भाजपा कार्यकर्ता हैं, हमने एक टेबल पर बैठकर मामला सुलझाया। अगर किसी ने गलती की तो खेद प्रकट किया।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “आप यूथ आइकॉन बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन आपकी भाषा और विचार हजम नहीं होते।”
बड़ा सवाल: क्या यह ‘माफीनामा’ पुलिस की स्वतंत्रता पर चोट है?
इस पूरे विवाद ने एक गंभीर सवाल को जन्म दिया है — क्या यह माफी एक राजनीतिक दबाव का परिणाम थी? क्या अब पुलिस प्रशासन स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकता? और सबसे अहम बात, क्या एक पुलिस अधिकारी को मंच से हटाने पर माफी मांगनी चाहिए थी, जबकि वह अपनी ड्यूटी निभा रहा था?
कानून विशेषज्ञों की राय
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि मंच से हटाना एक प्रशासनिक निर्णय हो सकता है, लेकिन यदि यह प्रोटोकॉल के तहत हुआ था, तो माफी की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह माफी एक गलत परंपरा की शुरुआत हो सकती है, जिससे पुलिस का मनोबल गिरेगा और वे राजनीतिक दबाव में काम करने लगेंगे।
सोशल मीडिया और जनता की प्रतिक्रियाएं
इस घटना से सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ लोग डीएसपी की माफी को “राजनीतिक शिष्टाचार” बता रहे हैं, तो कई यूजर्स ने इसे “असहनीय दबाव” और “लोकतंत्र का मजाक” बताया है। ट्विटर पर हैशटैग #DSPApology और #SirsaControversy ट्रेंड कर चुके हैं।