




रोहतक निजी अस्पताल में लापरवाही या वसूली? सीने में चोट, पर पेट का ऑपरेशन, फिर बना 1.97 लाख का बिल — परिजनों का हंगामा, पुलिस पहुंची मौके पर
The Airnews | रिपोर्ट: Yash | स्थान: रोहतक, हरियाणा
हरियाणा के रोहतक जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने न केवल आम नागरिकों को झकझोर दिया है, बल्कि निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। यह पूरा प्रकरण एक दुर्घटना पीड़ित मरीज के इलाज से जुड़ा है, जिसमें कथित रूप से छाती की चोट के बावजूद पेट का ऑपरेशन किया गया। इसके बाद इलाज के नाम पर लाखों का बिल बना दिया गया और जब मरीज को गंभीर हालत में दूसरे अस्पताल (मेदांता) भेजा जाने लगा, तो 60 हजार रुपए की अतिरिक्त मांग कर दी गई। इस बात को लेकर परिजनों ने जोरदार हंगामा किया और मामला पुलिस तक जा पहुंचा।
घटना की शुरुआत: एक्सीडेंट के बाद अस्पताल में भर्ती
घटना की शुरुआत दो दिन पहले हुई जब सोनीपत जिले के गांव मंडोरी निवासी संदीप का एक्सीडेंट जसिया क्षेत्र के पास हो गया। इस एक्सीडेंट के बाद एक राहगीर ने संदीप को पास के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया और उसके परिजनों को सूचना दी। संदीप के भाई नवीन ने बताया कि जैसे ही उन्हें सूचना मिली, वह फौरन अस्पताल पहुंचे।
डॉक्टरों ने परिजनों को बताया कि मरीज की आंत में परेशानी है, जिसके चलते पेट का ऑपरेशन करना जरूरी है। परिजन डॉक्टरों की बात मानकर इलाज में सहयोग करते रहे। पहली बार ऑपरेशन के बाद जब दोबारा खून निकलने लगा तो मरीज को फिर से ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया। इस बार भी उन्हें यही बताया गया कि सब कुछ सामान्य है।
गलती से पेट का ऑपरेशन — बाद में सीने की चोट का खुलासा
नवीन का आरोप है कि बाद में डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि मरीज को दरअसल छाती में चोट लगी थी, लेकिन पेट का ऑपरेशन गलती से कर दिया गया। जब तक यह जानकारी सामने आई, तब तक मरीज की हालत गंभीर हो चुकी थी। इसके बाद डॉक्टरों ने संदीप को मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम रेफर करने की सलाह दी।
1.97 लाख रुपए का बिल और फिर भी 60 हजार की मांग
सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि अस्पताल ने इलाज के नाम पर 1.97 लाख रुपए का बिल थमा दिया। नवीन ने बताया कि उन्होंने बिल की राशि जमा कर दी, ताकि मरीज को समय रहते दूसरे अस्पताल भेजा जा सके। लेकिन जब वो संदीप को लेकर जाने लगे तो डॉक्टरों ने एक और शर्त रख दी — कि 60 हजार रुपए और जमा करने होंगे, अन्यथा मरीज को एंबुलेंस में चढ़ाने नहीं दिया जाएगा।
इस रवैये से आहत परिजनों ने विरोध जताया और कहा कि अगर इसी दौरान मरीज की जान चली जाती, तो इसका जिम्मेदार कौन होता? पैसे की मांग के कारण मरीज को करीब 20 से 25 मिनट तक स्ट्रेचर पर ही रोककर रखा गया।
डायल 112 पर कॉल — मौके पर पहुंची पुलिस
मामला गंभीर होता देख नवीन ने डायल 112 पर कॉल कर दी और पुलिस को मौके पर बुला लिया। पुलिस पहुंचने के बाद भी मरीज को तुरंत एंबुलेंस में नहीं चढ़ाया गया। काफी बहस और बातचीत के बाद मरीज को मेदांता अस्पताल के लिए रवाना किया गया।
अर्बन एस्टेट थाना पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और स्थिति को संभाला। पुलिस ने दोनों पक्षों की बात सुनी और कहा कि मामले में निष्पक्ष जांच की जाएगी।
अस्पताल की ओर से उल्टा आरोप — मारपीट की झूठी शिकायत
नवीन ने एक और गंभीर आरोप लगाया कि जब उन्होंने डायल 112 पर कॉल की, तो अस्पताल प्रबंधन ने भी पुलिस को फोन कर दिया और झूठा आरोप लगाया कि मरीज के परिजनों ने अस्पताल में मारपीट की है। नवीन का कहना है कि अस्पताल में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, अगर उन्होंने कोई हंगामा या हिंसा की है, तो उसके फुटेज सार्वजनिक किए जाएं। उन्होंने कहा कि अगर वह दोषी हैं तो उन पर कार्रवाई हो, लेकिन अगर अस्पताल की लापरवाही सामने आती है तो उसके खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएं।
लिखित शिकायत पुलिस को सौंपी गई
नवीन ने इस पूरे मामले की लिखित शिकायत पुलिस को सौंपी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि पुलिस निष्पक्ष जांच करेगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। नवीन का साफ कहना है कि यह मामला सिर्फ उनके भाई का नहीं है, बल्कि यह एक आम नागरिक की लड़ाई है जो निजी अस्पतालों की लापरवाह और मुनाफाखोर व्यवस्था से जूझ रहा है।
डॉक्टर मीडिया से बात करने को तैयार नहीं
जब इस मामले में मीडिया ने अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो डॉक्टरों ने बातचीत से इनकार कर दिया। इससे भी यह आशंका गहराई कि अस्पताल कहीं न कहीं कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा है।
पुलिस जांच अधिकारी का बयान
अर्बन एस्टेट थाने के जांच अधिकारी वीरेंद्र ने कहा कि अस्पताल से कॉल आने के बाद पुलिस टीम मौके पर पहुंची थी। मौके पर मौजूद युवक नवीन ने डॉक्टरों पर लापरवाही के आरोप लगाए, जबकि अस्पताल प्रशासन ने युवक पर हंगामा करने का आरोप लगाया। दोनों पक्षों से शिकायत प्राप्त हुई है और पुलिस मामले की जांच कर रही है।
लापरवाही या ठगी — प्रशासन को जांच करनी होगी
इस पूरे मामले में कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं:
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क्या वाकई में डॉक्टरों से गलती हुई या जानबूझकर पेट का ऑपरेशन किया गया ताकि बिल बढ़ाया जा सके?
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अगर मरीज की छाती में चोट थी, तो पेट का ऑपरेशन कैसे कर दिया गया?
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पैसे जमा करने के बाद भी मरीज को क्यों रोका गया?
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अतिरिक्त 60 हजार की मांग किस आधार पर की गई?
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अस्पताल की तरफ से झूठी शिकायत क्यों दी गई?
इन सभी सवालों के जवाब प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को देने होंगे। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो यह एक खतरनाक परंपरा का हिस्सा बन सकता है जिसमें आम जनता को इलाज के नाम पर लूटा जाएगा।
निजी अस्पतालों पर सख्ती जरूरी
यह पहली बार नहीं है जब किसी निजी अस्पताल पर इलाज में लापरवाही और वसूली के आरोप लगे हों। इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं, जहां मरीज़ों की पीड़ा के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है और मरीज की जान से खिलवाड़ होता है।
अब वक्त आ गया है कि सरकार इस ओर ध्यान दे और ऐसे अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखे। यह जरूरी है कि मरीजों के अधिकारों की रक्षा हो और उन्हें इलाज के नाम पर शोषण से बचाया जाए।