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Saturday, November 8, 2025

सोनीपत हॉस्पिटल में CMO विवाद: महिला आयोग ने लिया संज्ञान, जांच एसीएस हेल्थ को सौंपी

सोनीपत हॉस्पिटल में CMO विवाद: महिला आयोग ने लिया संज्ञान, जांच एसीएस हेल्थ को सौंपी

चंडीगढ़, ( Sahil Kasoon )

सोनीपत के खरखौदा सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग में चल रहे विवादों का मामला अब हरियाणा राज्य महिला आयोग तक पहुंच चुका है। आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं, जिसके तहत अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) हेल्थ को पूरी गहनता से जांच करने के निर्देश दिए गए हैं। यह विवाद मुख्य रूप से अस्पताल के तत्कालीन एसएमओ डॉ. आशा सहरावत और अस्पताल के कर्मचारियों के बीच उत्पन्न हुआ है, जब डॉ. सहरावत ने सख्त कार्रवाई करते हुए लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कदम उठाने शुरू किए थे।

महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने बताया कि इस मामले में सोनीपत के सीएमओ भी जांच के दायरे में हैं, क्योंकि उनके द्वारा कर्मचारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि इस जांच में कोई भी पक्ष प्रभावित नहीं होगा और निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई की जाएगी।


मामले की पृष्ठभूमि: डॉ. आशा सहरावत का विवाद

सोनीपत के खरखौदा सिविल अस्पताल में डॉ. आशा सहरावत को एसएमओ के रूप में पदोन्नति मिलने के बाद से अस्पताल में कर्मचारियों के बीच असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई। 11 जुलाई 2024 को डॉ. सतपाल का तबादला खरखौदा सिविल अस्पताल में एसएमओ के पद पर किया गया था, और 13 जुलाई 2024 को डॉ. आशा सहरावत को इस पद पर पदोन्नत किया गया। पदोन्नति के बाद उन्होंने अस्पताल में लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों और अधिकारियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

डॉ. सहरावत का यह कदम अस्पताल के कर्मचारियों के लिए अप्रत्याशित था, और यह एक विरोध प्रदर्शन का कारण बन गया। कर्मचारियों की शिकायत थी कि डॉ. सहरावत बहुत सख्त और अनुशासनप्रिय थीं, जिसकी वजह से उन्हें परेशानियां उठानी पड़ीं। कर्मचारी चाहते थे कि उनका तबादला किया जाए और उनकी जगह किसी अन्य अधिकारी को नियुक्त किया जाए।


प्रदर्शन और धरना: कर्मचारियों का विरोध

जुलाई 2024 के मध्य में, जब डॉ. आशा सहरावत ने अस्पताल में कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना शुरू किया, तो कर्मचारी और अधिकारी उनके खिलाफ एकजुट हो गए। 16 जुलाई 2024 को अस्पताल में कर्मचारियों और अधिकारियों ने डॉ. सहरावत के खिलाफ धरना शुरू कर दिया। यह धरना और विरोध प्रदर्शन 21 दिनों तक चला, जिससे अस्पताल के कार्यों में भी रुकावट आई।

धरने के दौरान डॉ. सहरावत और डॉ. सतपाल के बीच भी विवाद बढ़ गया, जिससे मामला और भी जटिल हो गया। इस दौरान, तत्कालीन सीएमओ ने मामले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन समाधान नहीं निकल सका। इसके बाद, उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी गई और सरकार ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए अस्पताल के चिकित्सकों, हेल्थ कर्मियों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का तबादला कर दिया।


महिला आयोग का介ण: हरियाणा राज्य महिला आयोग की भूमिका

इस पूरे विवाद में हरियाणा राज्य महिला आयोग ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. आशा सहरावत ने धरने और मानहानि के मामले में महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की और आयोग ने इस विवाद की गहन जांच का आदेश दिया है।

रेणु भाटिया ने स्पष्ट किया कि महिला आयोग इस मामले में किसी भी पक्ष के साथ अन्याय नहीं होने देगा और निष्पक्ष जांच के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी। महिला आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया कि मामले में कोई पक्षपाती रुख नहीं अपनाया जाएगा और सभी तथ्यों को सही ढंग से जांचा जाएगा।


सीएमओ की भूमिका और जांच की दिशा

महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने इस मामले में सोनीपत के सीएमओ को भी बुलाया था। आयोग ने पाया कि मौजूदा सीएमओ कर्मचारियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि डॉ. आशा सहरावत के खिलाफ यह विरोध प्रदर्शन कर्मचारियों की गलतियों और लापरवाही के कारण उत्पन्न हुआ था। इस कारण, आयोग ने मामले की जांच अब एसीएस हेल्थ को सौंप दी है।

आयोग ने बताया कि इस मामले में कोई भी पक्ष अनदेखा नहीं किया जाएगा और पूरी निष्पक्षता से जांच की जाएगी। मामले की जांच के दौरान सभी तथ्यों को बारीकी से देखा जाएगा और जिम्मेदारों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।


डॉ. आशा सहरावत की स्थिति और प्रतिक्रिया

डॉ. आशा सहरावत के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन और धरने के बावजूद वे अपने कड़े कदमों पर अडिग रही हैं। उन्होंने अस्पताल में लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ सख्ती दिखाई थी, जो उनकी मुख्य नीतियों का हिस्सा था। उनके अनुसार, यह कदम अस्पताल के कार्यों को बेहतर बनाने और कर्मचारियों को जिम्मेदार बनाने के लिए उठाए गए थे।

उनका कहना था कि यदि कर्मचारियों के खिलाफ सख्ती नहीं दिखाई जाती, तो अस्पताल के कार्यों में सुधार संभव नहीं था। हालांकि, उनके इस कदम को कर्मचारियों द्वारा चुनौती दी गई, और अंततः यह विवाद एक बड़े स्तर पर सामने आया।

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