हरियाणा में साइबर क्राइम यूटिलिटी सर्विस लागू: लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचेंगे लोग, शर्त ये कि FIR न होने पर ही कोर्ट जाएंगे
चंडीगढ़,( Sahil Kasoon )
हरियाणा सरकार ने साइबर अपराधों के मामलों को जल्द निपटाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य सरकार ने साइबर अपराध को जनोपयोगी सेवा (Utility Service) के रूप में वर्गीकृत कर दिया है। इस फैसले के परिणामस्वरूप, अब साइबर अपराध के मामलों को जल्दी निपटाने का अवसर मिलेगा और यह नागरिकों को लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से बचने में मदद करेगा। इस निर्णय का उद्देश्य, साइबर धोखाधड़ी और अन्य साइबर अपराधों के मामलों में पीड़ितों को त्वरित राहत प्रदान करना है।
सरकार ने इस सुविधा को लागू करते हुए एक महत्वपूर्ण शर्त भी लगाई है। इसके तहत, साइबर अपराध से संबंधित मामलों में जब तक एफआईआर (First Information Report) दर्ज नहीं होती, तब तक स्थायी लोक अदालत (Permanent Lok Adalat) के माध्यम से शिकायतों का निपटान किया जाएगा। इस पहल के तहत, जिन मामलों में कोई एफआईआर नहीं दर्ज हुई है, वहां प्री-ट्रायल चरण में समाधान मिलेगा, जिससे मामले का त्वरित निपटान संभव होगा।
साइबर अपराध से राहत: लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचाव
हरियाणा सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से, जो लोग साइबर अपराधों के शिकार हुए हैं, उन्हें अब लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं से बचने का अवसर मिलेगा। अब वे अपनी शिकायतों को स्थायी लोक अदालत के पास सीधे भेज सकते हैं, जो कि इन मामलों के शीघ्र निपटान के लिए जिम्मेदार होगी।
साइबर अपराधों से जुड़े मामलों में सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि यह मामलों की कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल होती है। पीड़ितों को कई महीनों या वर्षों तक न्याय प्राप्त नहीं हो पाता था। लेकिन अब इस नए निर्णय के द्वारा, स्थायी लोक अदालत को मामले का शीघ्र निपटान करने का अधिकार मिल गया है, जिससे पीड़ितों को राहत मिलेगी।
एफआईआर की शर्त: किस प्रकार के मामलों पर लागू होगा यह निर्णय
साइबर अपराध से संबंधित मामलों में राहत देने के इस निर्णय का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह निर्णय केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा, जिनमें एफआईआर दर्ज नहीं की गई हो। यदि साइबर अपराध के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है, तो उसे सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत ही निपटाया जाएगा। लेकिन यदि एफआईआर नहीं है, तो पीड़ित सीधे स्थायी लोक अदालत से मदद ले सकते हैं।
स्थायी लोक अदालत के समक्ष आवेदन केवल उन मामलों में प्रस्तुत किया जा सकेगा, जहां कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई हो। इस शर्त का उद्देश्य यह है कि केवल विवादित और जटिल मामलों को ही सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत निपटाया जाए, जबकि सरल और अविवादित मामलों का समाधान त्वरित तरीके से किया जा सके।
स्थायी लोक अदालत: त्वरित समाधान का एक नया रास्ता
स्थायी लोक अदालत का उद्देश्य नागरिकों को त्वरित न्याय उपलब्ध कराना है, विशेष रूप से उन मामलों में जहां शिकायतें स्पष्ट और सीधे हैं। अब जब साइबर अपराध को जनोपयोगी सेवा के रूप में जोड़ा गया है, तो साइबर धोखाधड़ी के शिकार पीड़ित स्थायी लोक अदालत के पास अपनी शिकायतों को सीधे भेज सकते हैं।
स्थायी लोक अदालत की विशेषता यह है कि यह कोर्ट प्रक्रिया से पहले विवादों का समाधान करती है, जिससे समय और पैसे की बचत होती है। इस प्रक्रिया में, अगर पक्षकार सहमति देते हैं, तो मामला अदालत में जाने से पहले हल हो सकता है।
साइबर पुलिस से विचार-विमर्श: एक सामूहिक निर्णय
हरियाणा सरकार ने इस निर्णय को लागू करने से पहले पंचकूला स्थित साइबर पुलिस (मुख्यालय) के पुलिस अधीक्षक के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया। पुलिस अधिकारियों से चर्चा करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि साइबर अपराधों को जनोपयोगी सेवाओं की सूची में डालना चाहिए। खासकर उन मामलों के लिए जहां कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।
साइबर अपराध से संबंधित मामलों में इस नए दृष्टिकोण के जरिए, सरकार का उद्देश्य उन पीड़ितों को जल्दी राहत प्रदान करना है जो लंबी कानूनी लड़ाई से थक चुके हैं और अपने धन की वापसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
साइबर धोखाधड़ी के पीड़ितों के लिए राहत
साइबर धोखाधड़ी के मामलों में पीड़ितों को अक्सर अपनी धनराशि वापस प्राप्त करने में लंबा समय लगता था। इस नई व्यवस्था के जरिए, जहां एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, वहां पीड़ितों को तुरंत राहत मिल सकेगी। स्थायी लोक अदालत इस मामले में सहायता प्रदान करेगी और पीड़ितों को जल्दी से अपनी धनराशि रिलीज करवा पाने में मदद करेगी।
यह निर्णय खासकर उन मामलों में प्रभावी होगा, जहां साइबर अपराध के जरिए अवैध रूप से धन की ठगी की गई हो और पीड़ित न्याय के लिए वर्षों तक इंतजार कर रहे हों। अब, स्थायी लोक अदालत इस प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाएगी।
विधिक सेवा प्राधिकरण एक्ट, 1987 के तहत कार्रवाई
साइबर अपराध को जनोपयोगी सेवा के रूप में सूचीबद्ध करने का निर्णय विधिक सेवा प्राधिकरण एक्ट, 1987 के तहत लिया गया है। इस एक्ट के अंतर्गत राज्य सरकारों को जनहित में सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं की सूची में बदलाव करने का अधिकार प्राप्त है।
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (HSLSA) ने पिछले साल यह पाया था कि राज्य में 38,000 से अधिक साइबर अपराध शिकायतें लंबित हैं। इस तथ्य के आधार पर, HSLSA ने इस पहल की वकालत की, ताकि इन लंबित शिकायतों का शीघ्र निपटान हो सके और पीड़ितों को राहत मिले।
सुमिता मिश्रा का बयान:
हरियाणा राज्य सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) सुमिता मिश्रा ने इस पहल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि साइबर अपराध को सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं की सूची में शामिल करने से साइबर अपराध के जरिए ठगे गए धन को जल्दी रिलीज करने और डी-फ्रीज करने में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस निर्णय से लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में कमी आएगी और साइबर अपराधों के शिकार पीड़ितों को न्याय मिलना आसान होगा।
सुमिता मिश्रा ने इसे राज्य सरकार की “जीवन जीने की सुगमता” पहल का हिस्सा बताया, जो नागरिकों को त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करने के लिए बनाई गई है। यह कदम हरियाणा के नागरिकों के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव होगा, जो लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे थे।